Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 12
________________ १२ 88888888888888888 क्या ? 888888888888 अजमेर शहर के बाहर एक दादा-बाड़ी है। जिसमें जिनदत्तसूरिजी की छत्री है, उस छत्री के गुम्बज में अभी थोड़े समय से कुछ चित्र बनवाये गये हैं, जिसमें एक चित्र में एक राजसभा में परस्पर साधुओं के शास्त्रार्थ का दृश्य दिखलाया हैं। उस चित्र के नीचे एक लेख भी है, उसमें लिखा है कि : "अणहिलपुर पट्टन में दुर्लभ राजा की राजसभा में जैन शासन शृङ्गार जिनेश्वरसूरीश्वरजी महाराज ने उपकेशगच्छीय चैत्यवासियों को परास्त कर विक्रम संवत् १०८० में खरतर बिरुद प्राप्त किया।" उपरोक्त लेख या तो बिलकुल गलत एवं कल्पना मात्र ही है, उसमें भी उपकेशगच्छीय चैत्यवासी शब्द तो प्रत्येक जैन को आघात पहुँचाने वाला है क्योंकि एक शान्ति-प्रिय ज्येष्ठ गच्छ का इस प्रकार अपमान करना सरासर अन्याय है। अतः अजमेर के खरतरों को मैंने सूचना दी थी कि या तो इस बात को प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा साबित कर दें कि जिनेश्वरसूरि और उपकेशगच्छीय चैत्यवासियों का शास्त्रार्थ हुआ था या 'उपकेशगच्छीय' इन शब्दों को हटा दें वरन् इसकी सत्यता के लिये मुझे प्रयत्न करना होगा। इस मेरी सूचना को कई दिन गुजर गये पर अजमेर के खरतरों ने इस ओर लक्ष्य तक भी नहीं दिया। अतः मुझे इस किताब को लिखने की आवश्यकता हुई जो आपके कर कमलों में विद्यमान है। जिसको आद्योपान्त पढ़ने से आपको रोशन हो जायेगा कि विघ्न संतोषियों ने एक मिथ्या लेख लिख कर जैन समाज के दिल को किस प्रकार आघात पहुचाया है। अब भी समय है उस शब्द को हटा कर इस मामले को यहां शान्त कर दें। 'लेखक'

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