Book Title: Kayotsargadhyana
Author(s): Amrutlal Kalidas Doshi
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 26
________________ चउवीसत्थय-सुत्तं [ोगस'-सूत्र] - भूत 8 : * लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली ॥ १ ॥ उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअल-सिजंस-वासुपुजं च । विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि ॥३॥ कुंथु अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्टनेमि, पासं तह वद्धमाणं च ॥ ४ ॥ एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला पहीण-जर-मरणा। चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ कित्तिय-बंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्ग-बोहि-लाभ, समाहिवरमुत्तमं दितु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ ७ ॥ * पहली पायानो सिसोगा' छ. ४ थी था। ' ' છંદમાં છે. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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