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शुद्धि.
(१८) अशुद्धि. अध्यवसायों का अध्यवसायों का
और दूसरा वर्ग उत्कृष्ट अंध्यवसायों
का भिन्न ही होते हैं , भिन्न ही होते हैं
तथा प्रथम समय के जघन्य अध्यवसायों से प्रथम समय के उत्कृष्ट अध्यवसाय
अनंतगुरा विशुद्ध समझने चाहिए समझने चाहिए और
प्रत्येक समय के जघन्य अध्यवसाय से तत्समयक उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्त
गुण विशुद्ध पूर्व 'सिवा
सिवा तीसरे स्वाभाविक स्वाभाविक द्यपि
यद्यपि
१८
१६
३२
१३
४
३६ ३८ "
२२ १७ २५
दुःस्वर
बीच
३६
दु:खर बाच पमते शेष
,
पमत्ते शेष २२