Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 106
________________ ( ७६ ) "बन्ध-सत्ता" के नाम से और दूसरे प्रकार की सत्ता"संक्रमण सत्ता" के नाम से पहचानना चाहिये । सत्ता में १४८ कर्म-प्रकृतियाँ मानी जाती हैं । उदयाधिकार में पाँच बंधनों ओर ५ संघातनों की विवक्षा जुदी नहीं की है, किन्तु उन दसों कर्म प्रकृतियों का समावेश पाँच शरीरनामकमों में किया गया है । तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शनाम कर्म की एक एक प्रकृति ही विवक्षित है । परन्तु इस सत्ता प्रकरण में बन्धन तथा संघातननामकर्म के पाँच पाँच भेद, शरीरनामकर्म से जुदे गिने गये हैं । तथा वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्शनामकर्म की एक एक प्रकृति के स्थानमें, इस जगह ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस, ८ स्पर्शनाम-कर्म गिने जातें हैं | जैसे - ( १ ) औदारिकबन्धननामकर्म, (२) वैक्रियबन्धननामकर्म, (३) श्राहारकबन्धननामकर्म, (४) तैजसबन्धननामकर्म और (५) कार्मणबन्धननामकर्म-पाँच बन्धननामकर्म । (१) श्रदारिक संघातननामकर्म, ( २ ) 'वैक्रिय संघातननामकर्म, (३) श्राहारकसंघातननामकर्म, (४) तैजससंघात नामकर्म श्रौर(५) कार्मणसंघातननामकर्म, ये पाँच संघातननामकर्म । (१) कृष्णनामकर्म, (२) नीलनामकर्म, (३) लोहिनामतकर्म, (४) हारिद्रनामकर्म और (५) शुक्लनामकर्मये पांच वर्णनामकर्म । (१) सुरभिगन्धनामकर्म और दुरभिगन्धनामकर्म ये दो गन्धनामकर्म । (१) तिक्तरसनामकर्म, (२) कटुकरसनामकर्म, (३)कषायरसनामकर्म, (४) अम्लरस नामकर्म, (५) मधुररसनामकर्म - ये पांच रसनामकर्म । (१) कर्कशस्पर्शनांम(फर्म, (२) मृदुस्पर्शनामकर्म, (३) लघुस्पर्शनामकर्म, (४) गुरुस्पर्शनामकर्म, (५) शीतस्पर्शनामकर्म, (६) उष्णस्पर्शनामकर्म, (७) स्निग्धस्पर्शनामकर्म, (८) रुक्षस्पर्शनामकर्म ये आठ स्पर्श 2

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