Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 132
________________ (१०२) सं० . गा० प्रा० रकङ्गोपाङ्गनाम. १७,२४-श्राहारजुगल ग्राहारकद्विक ३,८,१७-साहारगदुग आहाराद्विक एक १४,२८-इग २६-गचत्तलय एकचत्वारिंश- एफेन्द्रियजातिना० एक सौ इकतालीस. ३०-इगत १७-इगसी ४-इगदिय-सय १४-इगारसय ११-इगेग २६-इत्थी एकशा एकाशाति एकाधिकशत एकादशशत एकैक स्त्री एक सौ एक, इक्यासी. एक सौ एक. एक सौ ग्यारह. एक एक. स्त्रीवेद. इस जगह. उच्च उच्छेद १२,२३-उच्च • १२-उच्छे ५,१६-उज्जोय १३,१५,२३-उदय उद्योत उच्चैर्गोत्र, विच्छेद. उद्योत उदय-कर्म-फल का अनुभव पृ० २ उदय १,२१-उदय १३-उदीरण उदय उदीरणा " उदीरणा-विपाक-काल प्राप्त. न होने पर भी प्रयत्न विशेप से दिया जानेवाला

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