Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 138
________________ (१०८) गा० प्रा० सं० हि. . २६-तुरियफोह १६-नुरियलोभ २१-तेय २६-तेर ३३-तेरस ७ तेवद्धि तुरीयक्रोध तुरीगलोभ तेजस् प्रयोदशन् त्रयोदगन् विपष्टि संज्वलनमोध. संज्वलनलोभ. तेजसशरीरनामकर्म तेरद. तिरेसठ. . स्थावर १४,२८-थावर ४-थावरचर स्थावरचतुष्क स्थावरनामकर्म. स्थावरनाग,मक्ष्मनाम,अप. प्तिनाम और साधारणनामकर्म. त्यानद्धिनिद्रा. निद्रानिद्रा, प्रचलावला और स्त्यानदि स्तुति करते हैं. ४---थीण १७,२४-थीणतिग स्त्यानद्धि स्त्यानद्धिभिक .१---शुणिमो स्तु-स्तुमः २०-~-दसणचा दर्शनचतुष्य चक्षुर्दर्शनावरण श्रादि । प्रकृतियाँ. २०,३०,३१-दुचरिम द्विचरम उपान्त्य-अन्तिम से पहला. निन्द्रा और प्रचला. ३०-दुनिदा ११-दुवीस द्विनिद्रा द्वाविंशति बाईस.

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