Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ (११३) गा० प्रा० २५-लद्ध ३०-लोह लभ्-लब्ध लोभ प्राप्त. लोभापाय. इव वा २३---ज्व ७,३२-३ ६-इर ३-वज्ज । १०-वरण ३४ - वैदिय ३१-वन्न २१-वन्नचर वन वर्ज-वर्ज वर्ण वन्द-बन्दित वर्ण वर्णचतुष्क समान. अथवा. वज्रऋपभनाराच सं० छोड़कर वर्णनामकर्म. वन्दन किया हुआ. वर्णनामकर्म. वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम और स्पर्शनामकर्म, धवा. वा ३२,३४-वा २७-वि १६-विउवह अपि वैक्रियाष्टक विघ्न ३०-विग्ध १४,२८-विगल विकल देवगति आदि ८ प्रकृत तियाँ पृ० ५४. अन्तराय. विवालेन्द्रिय (हीन्द्रिय 'से चतुरिन्द्रियतक) जातिनामकर्म. जिननामकर्मफे सिवाय. २५-विजिण २७,३४---विणा ६,२६,२७-विणु १३-विभाग विजिन विना विना विपाक सिवाय. छोड़कर. फल.

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151