Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 120
________________ (१०) mma 1 yuut Awalasimaja m .co r a & &kha जुगुप्सा पुरुषवेद स्नोवेद नपुंसकवेद | श्रायु-कर्म-४ ४५ देवायु ४६ मनुष्यप्रायु ४७ तिर्यचत्रायु ४८ नरकवायु नाम-कर्म-१३ मनुष्यगति-नामकर्म तिर्यञ्चगति , देवगति " नरकगति. एकोन्द्रयजाति, द्वीन्द्रियजाति , त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, वैक्रिय , , श्राहारक, " सातसम्राट केदभाग ६१ तेजन " " ६२ कार्मण , " ६३ । औदारिकअङ्गोपाङ्ग, मायुकर्म का तीसरे गुणस्थान में बन्ध नहीं होता, इससे तीसरे को कोई अन्य गुणस्थानों को उसके बन्ध-योग्य समझना । 8SKEEK since cimwww.aims com Nuscak our pecian assic cro - FEM2000

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