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(६६) स्थान में मानी है । इसीप्रकारगोम्मटसार(कर्मकाण्ड-३३३ से ३३६) के मतानुसार पाँचवें गुणस्थान में वर्तमान जीच को नरक-प्रायु को सत्ता नहीं होती और छठे तथा सातवें गुणस्थान में नरक-श्रायु, तिर्यञ्च-श्रायुं दो की सत्ता नहीं होती, अतएव उस ग्रन्थ में पाँचवे गुणस्थान में १४७ की और छठे, सातवें गुणस्थान में १४६ की सत्ता मानी हुई है । परन्तु कर्मग्रन्थ के मतानुसार पाँचवें गुणस्थान में नरक-श्रायु को और छठे, सातवें गुणस्थान में नरक, तिर्यञ्च दो श्रायुओं की सत्ता भी हो सकती है।
परिशिष्ट।