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। उन तीन काव, अविरति यादृष्टिगुणस्थान
इन १२० कर्म-प्रकृतियों में से तीर्थकरनामकर्म,श्राहारकशरीर और आहारकअङ्गोपाङ्ग इन तीन कर्म-प्रकृतियों का वन्ध, मिथ्यात्वगुणस्थानवी जीवों को नहीं होता! इस का. कारण यह है कि तीर्थकरनामकर्म का बन्ध, सम्यक्त्व से होता है और आहारक-द्विक का वन्ध, अप्रमत्तसंयम से । परन्तु मिश्यादृष्टि-गुणस्थान में, जीवों को न तो सम्यक्त्व का ही सम्भव है और न अप्रमत्तसंयम का; क्योंकि चौथे गुणस्थान से पहले सम्यक्त्व हो ही नहीं सकतातथा सातवें गुणस्थानसे पहले अप्रमत्त-संयम भी नहीं हो सकता । उल्लं तीन कर्म-प्रकृतियों के विना शेप११७ कर्मप्रकृतियों का बन्ध मिथ्यात्व, अविरति, कपाय और योगइन चार कारणों से होता है, इसीसे मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में वर्तमान जीव शेष १९७ कर्म-प्रकृतियों को यथासम्भव बाँध सकते हैं ॥३॥ . . . नरयतिगजाइथावर चउ,हुंडायवछिवट्ठ नपुमिच्छं। ...
सोलंतो इगहिय सय,सालणि तिरियाणदुहगतिगं ॥४॥ . नरकत्रिकजातिस्थावरचतुष्क,हुंडातपसेवात नपुंमिथ्यात्वम् षोडशान्तएकाधिकशतं,सास्वादने तिर्यस्त्यानार्द्धदुर्भगत्रिकम्
अणमभागिइ संघयण चर,निउज्जोय कुखगइथिति ।
पणवीसंतो मीसे चउसयरिदुआउअश्रवन्धा ॥५॥ अनमध्याकृतिसंहनन चतुष्कनीचोद्योत कुखगतिस्त्रीति पंचविंशत्यन्तो मिश्रे, चतुःसप्तति द्वायुप्काऽबन्धात् ॥४॥ ___ अर्थ-सास्वादन गुणस्थान में १०१ कर्म-प्रकृतियों का वन्ध होता है। क्योंकि पूर्वोक्त ११७ कर्म-प्रकृतियों में से नरकत्रिक, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, हुंडसंस्थान, पातपनाम- . कर्म, सेवासिंहनन, नपुंसकवेद और मिथ्यात्व-मोहनीय . '