Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 64
________________ (३४) ४-मोहनीय को २६-प्रकृतियाँ, जैसे-मिथ्यात्वमोहनीय (१), अनन्तानुवन्धि-क्रोध, अनन्तानुबन्धि-मान, अनन्तानुबन्धि-माया, अनन्तानुबन्धि-लोभ (४) अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध,अप्रत्याख्यानावरण-मान, अप्रत्याख्यानावरण-माया,अप्रत्याख्यानावरण-लोभ(४)प्रत्याख्यानावरणक्रोध, प्रत्याख्यानावरणमान, प्रत्याख्यानावरणमाया, प्रत्याख्याना वरणलोभ (४) संज्वलनक्रोध, संज्वलनमान, संज्वलनमाया, संज्वलनलोभ (४), स्नोवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद् (३), हास्य, रति, परति, शोक, भय और जुगुप्सा (६)। ५-श्रायु कर्म की(४)-प्रकृतियाँ,जैसे;-(१)-नारक-प्रायु, (२)-तिर्यञ्च-श्रायु, (३)-मनुष्य-श्रायु और (४)-देव-श्रायु ६-नामकर्म की ६७-प्रकृतियाँ-जैसे:-(१)नरकगतिनामकर्म, तिर्यञ्चगतिनामकर्म,मनुष्यगतिनामकर्म और देवगतिनामकर्म, येचारगतिनामकर्म(२)एकेन्द्रियजातिनामकर्म,द्वीन्द्रियजातिनामकर्म, श्रीन्द्रियजातिनामकर्म, चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म और पञ्चन्द्रियजातिनामकर्म, ये पाँच जातिनामकर्म (३) औदारिकशरीरनामकर्म वैक्रियशरीरनामकर्म, आहारकशरीरनामकर्म, तैजसशरीरनामकर्म और कार्मणशरीरनामकर्मये पाँच शरीरनामकर्म । (४) औदारिक अङ्गोपाङ्गनामकर्म, वैक्रियङ्गोपाङ्गनामकर्म और आहारकअङ्गोपाङ्गनामकर्म ये तीन अङ्गोपाङ्गनामकर्म (५) । वज्रक्रषभनाराचसंहनननामकर्म, ऋपभनाराचसंहनननामकर्म । नाराचसंहनननामकर्म, अर्धनाराचसंहनननामकर्म, कालिकासंहनननामकर्म, सेवार्तसंहनननामकर्म-ये छः संहनननामकर्म(६)समचतुरस्रसंस्थाननामकर्म, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थाननामकर्म, सादि

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