Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 81
________________ (५१) ओ३म उदयाधिकार पहले उदय और उदोरणा का लक्षण कहते हैं, अनन्तर प्रत्येकगुणस्थान में जितनी २ कर्म-प्रकृतियों का उदय तथा उदीरणा होती है उनको बारह गाथाओं से दिखाते हैं उदओ विवाग चेयण मुदीरण मपत्ति इह दुवोससयं । सतर-सयं मिच्छे मीस-सम्म-आहार-जिणणुदया ॥ १३ ॥ उदयो विपाक-वेदन मुदीरण मप्राप्त इह द्वाविशति-शतम् । सप्तदश-शतं मिथ्यात्वे मिश्र-सम्यगाहारक जिनानुदयात् १३ अर्थ-विपाक का समय प्राप्त होने पर ही कर्म के विपाक (फल)को भोगना उदय कहाता है।और विपाक का समय प्राप्त न होने पर कर्म फल को भोगना उसे 'उदीरणा कहते हैं। उदय-योग्य तथा उदीरणा-योग्य कर्म-प्रकृतियाँ१२२ है । उन में से ११७ कर्म-प्रकृतियों का उदयं पहले गुणस्थान में हो सकता है क्योंकि १२२ में से मिश्रमोहनीय, सम्यक्त्वमोहनीय,आहारक-शरीर,आहारक-अगोपाग और तीर्थकरनामकर्म इन पाँच कर्म-प्रकृतियों को उदय पहले गुणस्थान में नहीं होता ॥ १६ ॥ भावार्थ-आत्मा के साथ लगे हुये कर्म-दलिक, नियतसमय पर अपने शुभाशुभ-फलौकाजो अनुभव करते हैं वह "उदय" कहाता है । कर्म-दलिकों को प्रयत्न-विशेष से खींचकर नियत-समय के पहले ही उन के शुभा

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