Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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दशधाकल्पः
[ कल्पान्तर्वाच्यः सिज्जायरत्ति भण्णइ आलय-सामी य तस्स जो पिंडो। सो सव्वेसिं न कप्पइ पसंग-गुरु-दोस-भावाओ॥८॥ जइ जग्गंति सुविहिया करंति आवस्सयं च अण्णत्थ । सिज्जायरो न होइ सुत्ते व कए व सो होइ॥६॥ तण-डगल-छार-मल्लग-सिज्जा-संथार-पीढ-लेवाइ। सिज्जायर-पिंडो सो न होइ सेहो य सोवहिओ॥१०॥ (३) मुदियाइ-गुणो राया अट्ठविहो होइ तस्स पिंडुत्ति। पुरमेयराण एसो वाघाईहिं पि पडिकुट्ठो॥११॥ मुइओ मुद्धभिसित्तो 'पंचहिं सि[सद्धिं तु भुंजइ रज्जं । तस्स उ वज्जो पिंडो तबिवरीयंमि भयणा उ ।। १२ ।। असणाइआ चउरो वत्थं पायं च कंबलं चेव । पाउच्छणगं च तहा अट्टविहो रायपिंडुत्ति॥१३॥ ईसर-पभिईहिं तहिं वाघाओ खद्ध-लोह-दाराणं । दंसण-संगो; गरहा इयरेसि न अप्पमायाओ॥१४॥ (४) कियकम्मं पि दुविहं अब्भुट्ठाणं तहेव वंदणयं । समणेहिं समणीहि य जहारिहं होइ कायव्वं ।। १५॥ सव्वाहिं संजईहिं किइकम्मं संजयाण कायव्वं ।' पुरिसुत्तमुत्ति धम्मो सव्व-जिणाणं पि तित्थेसु ।।१६।। (५) . पंच-वओ खलु धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिमगाण जिणाणं चउव्वओ होइ विण्णेओ ।। १७॥ नो अपरिग्गहियाए इत्थीए जेण होइ परिभोगो। ता तविरईइच्चिय अबंभ-विरइत्ति पण्णाणं ॥१८॥ दुण्ह वि दुविहो वि ठिओ एसो आजम्म चेव विण्णेओ। इय वय-भेया दुविहो एगविहो चेव तत्तेणं ।। १६ । (६) उवठावणाइ-जिट्ठो विण्णेओ पुरिम-पच्छिम-जिणाणं । पव्वज्जाए उ तहा मज्झिमगाणं निरइयारो॥२०॥ (७) सप्पडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स जिणस्स । मज्झिमगाण जिणाणं कारण-जाए उ पडिक्कमणं ।।२१।। (८) १. सेनापति १, पुरोहित २, श्रेष्ठि ३, अमात्य ४, सार्थवाह ५

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