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वाला है, अहो सजनो ऊपरोक्त कुतर्क कुशंका कुसंगत कुदृष्टिराग कुग्राह कदाग्रह पक्षपात स्थित्यादिकका त्यागकरके शुद्ध प्ररूपक गुणयुक्त सुगुरुके उपदेशसें यथा संप्रदाय सिद्धान्तानुसार सुविहितविधिमार्ग में प्रवृत्ति करो शुद्ध सूत्रार्थ पाठ उच्चारणसहित प्रधानभावपूर्वक श्रीदेवगुरु धर्मकी त्रिकरण योगसें आराधाना निरन्तर करो जिससे इसभवमें परभवमें सर्वोत्कृष्ट सुख प्राप्त हो और ऊपर देखाई हूइ कितनीक कुशंकाओंका परिहार यथाअवसर यथासंप्रदाय समाधान युक्ति हेतु दृष्टान्तपूर्वक करदीया जावेगा, इहांपर प्रस्तावना जादा वढजावै इस्से नहिं लिखा है, इत्यलं पल्लवितेन, और इहांपर चरित्र लेखकके गुरुवर्यका यथार्थ सञ्चित्र और चरित्र लेखकमुनिगण वृषभः पं० श्रीमान् आनंदमुनिजीमहाराजका सञ्चित्र देना अत्यावश्यक है, नम्रशिरोहि इति विज्ञ. पयति जयमुनिः ॥ अथ ग्रंथलेखकः स्वगुरुचरित्र परिचयं संक्षिप्तमा. त्रम् दर्शयति । तथाहि देश मरु राजधानी जोधपुर राजा श्रीमान् तखतसिंहजी विजयराज्ये जोधपुर जिल्हे पश्चिम भागमे वरनामहै, उसका नाम चतुर्मुख याने चामुं है, पिताकानाम श्रीमेघरथ गोत्र वाँफणा वृद्ध शाखा ज्ञाति ओशवाल, मूल वंश ऊकेश, माताकानाम श्नी अमरादेवी जन्म १९१३ जन्म नाम श्रीकीर्तिचंद्रकुमारः किसीसमय शहर आनाहूवा, तत्र श्रीमती आर्या धर्मश्रीजीके समागममे मातासहितपुत्रको प्रतिबोधहूवा, वहसाल याने वर्ष १९२६का था, उससमय आपश्रीकी अवस्था करीब १३ वर्षकीथी, तिससमय आपश्रीकी भवविरक्ति परिणति भइ, परन्तु पढमनाणं तओदया, एवं चिट्ठइ सबसंजए, अभाणी किं काही, किंवा नाहीइ, छेअपावगं,१०सोचाजाणइ कल्लाणं, सोचा जाणइपावगं, उभ
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