Book Title: Jain Vidya 05 06 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 9
________________ जनविद्या इस रचना में संस्कृत व प्राकृत के कई श्लोक व गाथाएं उपलब्ध हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि कवि संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में भी काव्य-रचना करने में सक्षम था। ___ 'जनविद्या' का यह पंचम अंक 'वीर विशेषांक' पाठकों एवं प्रध्ययनकर्ताओं को समर्पित है। अपभ्रन्श भाषा के विभिन्न विद्वानों ने कवि के व्यक्तित्व, कर्तृत्व व काव्य-प्रतिभा पर तो प्रकाश डाला ही है साथ में उसकी महत्त्वपूर्ण अपभ्रन्श रचना 'जम्बूसामिचरिउ' के साहित्यिक एवं काव्यात्मक महत्त्व से भी परिचय कराया है। संस्थान-समिति एवं सम्पादक मण्डल इन सभी विद्वानों का हार्दिक आभारी है। हम अपने ही सहयोगी डॉ. कमलचन्द सोगानी, प्रोफेसर दर्शन-शास्त्र विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के भी हार्दिक आभारी हैं जिन्होंने पूर्व की भांति इस अंक में भी हार्दिक सहयोग दिया है। डॉ. गोपीचन्द पाटनी सम्पादकPage Navigation
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