Book Title: Jain Vidya 05 06 Author(s): Pravinchandra Jain & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 7
________________ प्रास्ताविक अपभ्रंश भाषा मध्यकालीन युग में एक अत्यन्त सक्षम भाषा रही है । उस युग में यह जनभाषा ही नहीं बल्कि एक साहित्यिक भाषा भी थी। इसके माध्यम से जीवन सम्बन्धी अनेक विषयों पर काव्यों की रचना की गयी । भाषा के साहित्यिकरूप ग्रहण करने एवं जनभाषा बनने में वर्षों लग जाते हैं । इस दृष्टि से अपभ्रंश भाषा का प्रादिकाल काफी प्राचीन है । अपभ्रंश भाषा को उत्तर भारत की करीब-करीब सभी आधुनिक भाषामों यथा हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, सिंधी, मराठी, बिहारी, बंगाली, उड़िया, आसामी प्रादि की जननी कहा जाता है । सौभाग्य का विषय है कि अब कुछ वर्षों से विद्वानों का ध्यान अपभ्रंश भाषा में उपलब्ध ग्रन्थों, विशेषकर अप्रकाशित रचनामों की ओर गया है और उनके प्रयत्नों से अपभ्रंश साहित्य का महान् खजाना प्रकाश में पा रहा है । इनमें से ही एक महाकाव्य 'जंबूसामिचरिउ' है। ... जंबूस्वामी भगवान् महावीर के गणधर सुधर्माचार्य द्वारा जनसंघ में दीक्षित किये गए थे । वे इस काल के अन्तिम केवली थे एवं उन्होंने भगवान् महावीर के निर्वाण के 64 वर्ष पश्चात् अर्थात् 463 ई. पूर्व निर्वाण प्राप्त किया था। स्वयं सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी को अंगों का उपदेश दिया था। प्रश्नों के माध्यम से जंबूस्वामी ने सुधर्माचार्य से सारे प्रागमों को भनी प्रकार सुना था, समझा था एवं धारण किया था। तत्पश्चात् जंबूस्वामी से उनके शिष्यों को पौर शिष्यों से उनके शिष्यों को यह ज्ञान धारावाहिक प्राप्त होता रहा। इस तरह यह परम्परा सैंकडों वर्षों तक चलती रही एवं आगम-ज्ञान की धारा अक्षुण्ण बनी रही । इस प्रकार पागम-ज्ञान की धारा में जंबूस्वामी का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण, अद्वितीय एवं स्मरणीय है । वे अमन-परम्परा में अलौकिक प्रतिभा के धारी एवं कठोर तपसाधक थे। उन्होंने बिना भोगे ही गार्हस्थ्य जीवन को त्याग दिया था । जंबूस्वामी एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे फिर भी यह दुर्भाग्य की बात है कि उनके जीवन के विषय में समकालीन स्रोतों से बहुत कम जानकारी मिलती है । जो कुछ भी जानकारी प्राप्त होती है वह अधिकांशतः जैन साहित्य एवं कुछ अन्य साहित्य से प्राप्त होती है । बाद में तो अपनी विशेषतामों के कारण जंबूस्वामी की जीवनी भिन्न-भिन्न स्रोतों से प्राप्त अनेक उपाख्यानों से जुड़ गयी । जैन साहित्य में तो जंबूस्वामी सेPage Navigation
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