Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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तीसरा उदाहरण स्थायी अक १२ और २१ को लीजिये । यहाँ ३, ४,५ शेष रहेंगे। इनमें ३ को पहजा, ४ को दूसरा और पांच को तीसरा अंक मान कर यन्त्र के अनुसार प्रथम तीन खाने भरने से सोलहवां और बीसवां कोष्ठक बन जायगा।
१६ स्थायी २० स्थायी
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१ भंग पहला दूसरा तीसरा २४/१२/ ३ २ भग दूसरा पहला तीसरा ४ ३ ५/१२/१३५२१] ३ भंग पहला तीसरा दूसरा ३ ५४|१|| ४ भंग तीसरा पहला दुसरा ५ भग दूसरा तीसरा पहला ४ ५ ३ ५ २ ४ ६ भंग तीसरा दुसरा पहला ५ ५ ३१२ ५४ ३/२१॥
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अन्तिम स्थायी अकों के सिवा शेप तीन अंक कोष्ठक के प्रथम भंग में छोटे बड़े के क्रम से रखे गये हैं। इनका हेर फेर होते हुए छठे भग में यह क्रम उल्ट गया है अर्थात् छोटे बड़े के बदले बड़े छोटे का क्रम हो गया है। इस यन्त्र को ध्यान पूर्वक देखने से मालूम होगा कि किस प्रकार परिवर्तन करने से छः भग बने हैं। स्थायी अंकों से बचे हुए तीन अंक तीसरे खाने में बड़े छोटे के क्रम से जोड़े से रखे गये हैं अर्थात् तीसरे खाने में प्रथम दो भागों में तीसरा मध्यम दो भागों में दूसरा
और अन्तिम दो भगों में पहला अंक रखा गया है। इस प्रकार तीसरा खाना भर लेने के बाद जो अक रह गये हैं उन्हें पहले दुसरे खाने में एक बार छोटे बड़े के क्रम से और दूसरी बार बड़े छोटे के क्रम से रखा गया है। जैसे आदि के दो भंगों में से प्रथम भंग में अवशिष्ट पहला दूसरा छोटे बड़े के क्रम से रखे गये हैं और दूसरे में इस क्रम को उल्ट कर बड़े छोटे के क्रम से दुसरा पहला रखे गये हैं। मध्य के दो भंगों में से प्रथम भंग में अवशिष्ट पहला तीसरा छोटे बड़े के क्रम से और दूसरे भंग में बड़े छोटे के क्रम से रखे गये हैं। इसी प्रकार अन्तिम दो भगों