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५२ जैनशिलालेख-संग्रह
[८२वासुदेवके उपदेशसे विदग्धराजने राजधानी हस्तिकुण्डिकामें ऋषभदेवका मन्दिर बनवाया था। इसने अपनी सुवर्णतुलाका दो तिहाई भाग इस मन्दिरके लिए तथा एकतिहाई भाग गुरुके लिए दान दिया था। विदग्धराजने इसी मन्दिरके लिए हस्तिकुण्डोके व्यापारियों के कई करोंका उत्पन्न बलभद्र गुरुको दान दिया था। इस दानको तिथि आषाढ़, संवत् ९७३ थी। विदग्धराजका पुत्र मंमट हुआ। इसने उक्त दानको माघ कृष्ण ११, संवत् ९९६को पुनः सम्मति दी। मंमटका पुत्र धवल हुआ। इसकी वीरताका विस्तृत वर्णन लेखमे किया है। जब मुंजराजने मेदपाटको राजधानी आघाटको नष्ट किया तब वहाँके राजाको धवलने आश्रय दिया था। दुर्लभराजके आक्रमणसे महेन्द्रका रक्षण इसीने किया तथा मूलराजके द्वारा पराजित धरणीवराहको भी आश्रय दिया । वृद्धावस्थामे धवलने अपने पुत्र बाल प्रसादको मिहासनपर स्थापित किया। इसके समय संवत् १०५३ मे वासूदेवके शिष्य शान्तिभद्रसूरिके उपदेशसे हस्तिकुण्डीकी गोष्ठी ( व्यापारियोके समूह ) ने विदग्धराज-द्वारा निर्मित मन्दिरका जीर्णोद्धार किया। गोष्ठीके सदस्योके नाम पंक्ति २२मे गिनाये है। लेखके पहले भागमे जो ४० श्लोकोंकी प्रशक्ति है वह सूर्याचार्यने लिखी थी। लेखके अन्तमे केशवमूरिका उल्लेख है ]
[ए० ई० १० पृ० १७ ]
विलपक्कम ( जि. उत्तर अर्काट, मद्रास )
सन् ९४५, तमिल नागनाथेश्वर मन्दिरके श्रागे पड़ी हुई शिलापर [ यह लेख चोल राजा मदिरकोण्ड परकेसरिवर्मन् (परान्तक १ ) के राज्यके ३८ वें वर्षमें लिखा गया था। तिरुप्पान्मलके आचार्य अरिष्टनेमिकी एक शिष्याके द्वारा एक कुआँ बनवानेका इसमें उल्लेख है । ]
[इ० म० उत्तर अर्काट २१६ ]