Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैनशिलालेख-संग्रह
१२६-०, १३३, १४१, १४३, दासण ३८९ १४५, १४८-५०, १५२-३, दासबोव १८७ २००, २०८
ददि १६१ त्रिभुवनवीर ३७८
दिनकर ११९,१२१ कीति २७५
दिनकरजिनालय १६७ त्रैलोक्यमल्ल ८२, ८४-६, ८९, दिल्ली ३४४.५
९०, ९३-४, ९८-९, १००, दिवाकर २५० १०५, ११०, ११५, १२०, दुग्गमार ३९, ४०
१७३, १७८, ३८९-९० दुद्दमल्ल १३३-४ दडग १५४
दुद्यक १९१, १९७ दडिगनकेरे १५५-६
दुर्गभट्ट ३६ दडिगसेट्टि ७०
दुर्लभ ( दुर्लभराज ) ४६, ५२, दण्डब्रह्म १३७
१८९, १९२, १९७ दण्डिपल्लि ४४
दुविनीत १७, २०, ९४ दत्ता ५,६
दूडम ११९.१२१ दत्तकसूत्रवृत्ति १०
दूसल १८९ दन्तिदुर्ग ३१
देकवे २०५ दमित्र ५, ६
देज्जमहाराज १५-१६ दयापाल २१४, २१६
देमलदेवी १७३ दयाभूषण ४०८
देमायप २३४ दयावसन्त २४
देल्हण १९६-७ दानप्प ३२८
देवकीति ७६, ३२३, ३२६, ३६३, दानवुलपाडु ५५, ६०, ३६३
३८४ दानिवास ३३१-४
देवगण ३८२ वारिसेट्टि १०८
देवगेरी ३८९ वावर्णदि १०२. ३८.
देवचन्द्र २२५, २५८,२७१, ३२३,

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