Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 540
________________ ४९३ जैन शिलालेख संग्रह २६३, २६५, ३८९.९० रत्नकति २६१, ३१०, ४०३-४, यापनीय संघ ४२, ८०, ८१, ९५, १२२, १५०, १५२, १५३, रत्नगिरि २१, ३४४-५ १८६, २२७, २६६, २७५, रलचन्द्र १९७ ३७६, ३७७-८ रत्ननन्दि २०४, २०७ याप्परुंगलक्कारिग ३९१ रत्नप्पोडेय ३१४ यावनिक ११-२ रत्नभूषण ३७७ यिवल्लिग्राम ३२९ रत्नापुरि २६७ योपलदाल ३३२-३ रवि १३-१५ येचिसेट्टि १०८ रविचन्द्र ५४, १२५, २५८, २७१ येडेहल्लि ३३०-१, ३३३ रविनन्दि ५४ येरगजिनालय ३६४ रससिद्धुलगुट्ट २०, ७२, २२६, येलबगि ३७३ २९३ रंगनबेट २१० योजणसेट्टि २८२, २८४, २८६-७ रंगप्पराज ३४४-४५ रक्कसगंग ५९ रंगरम २५६ रघु १३ राइकवाल ३९५, ३९७ रघुवर, रघूजी ३९४, ४१५ राधमल्ल ५८, ६०, १०९ रट्टगुडि २४ राचय ७१ रजिनालय २४०, २४३, २४६, राजकीर्ति ४०५.६ २४९ राजकेसरिवर्मन् ५६, ९९, १४० रदृवंश १२८, १३२, १५३, १८५, २३५, २३७, २४३, २४५, राजगावुण्ड १००-१ २४९ राजदेव १६८.७१ रणकि १२३, १२५ राजदेवी १८९ रणपाकरस २६ राजपाल ४०. रणावलोक २८, ३० राजभीम ६४-५, ६८

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