Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 550
________________ बैनशिलालेख संग्रह सिंहनन्दि ७४, १७५, २१४, सेट्टिगोड ३२९ २१६, २८८ . सेजिंगकोतलि १७४ सिंहराज १८९ सेणिसेट्टि २८९, ९. सिंहविष्णु ११-२ सेतु ३२९, ३३७ सिंहदूरगण ३७ सेन अन्वय ३९, ९२-३ सोम्पाल्वायगर १९, २० सेन गण ८४.५, १०७, ११८, सीयक १९१.२, १९४, १९७ १२०, २९३, २९५, २९९, सुजानराय ३२८ ३३६, ३३९, ३४१, ३८., सुन्दरपाण्डय २७, २५५ ३९६.९, ४०१-२, ४०४, सुमद्र १५९ ४०८, ४१२, ४२०, ४२८ सुभूति ४ सेननसिंग १२८ सुमति ३५-६, १७५, २१४, २१६ मेननप ( सेनविभु ) २३६, २४३-४ सुरभिकुमदचन्द्र २३२ सेनसंघ ३५-६ सुरेन्द्रकीति ४०८-११, ४१४-६, सेन्द्रक १५६ ४२८ सेम्बूर २५७ सुलोचना २७ सेवुण २१३-४, २१८ सुवर्णवर्ष ३५-६ संगोट्ट ५८,६० सूरत ३० सैतवाल ३९६, ४०७, ४२५-६ सूरसेन २९४.५ संदान्तिदेव २८३ सूरस्थ गण ५४, ७३, ९८, १०२, सोगि २०० ११२-३, १७२, २२४, २६९, सोडक ७५ ३७२-३, ३७४, ३७८ सोसियुर ७० सूर्याचार्य ४९, ५२ सोदे ३१५, ३४७ सूर्याश्रम १६१ सोन्द ३१६, ३३८, ३४२ सूलाकोमरन् २० सोनोपंडित ४०७ सेटिमहादेवी २७५ सोमदेव ५३, २५९, ३७४

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