Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 542
________________ जैनशिकाल-संग्रह रेवकनिर्मडि १०४, १०९, १५१-१ ललितकीति २२२-३, २२५, २९५. रेबकम्बरसि ७६ ६, ३१९, ३५४-५, ३७९, रेवणम्य ११२ ३८२, ४०३ ललिता १९३, १९७, ३६८ रेवणाग्राम १९०, १९६ लाषक ६ लकवरपुकोट २८७ लाटीय मण्डल ३४ लक्कुण्डि ७३, २०८, ३७५, ३८२ लाडबागडगच्छ ४००, ४०२-६, लक्ष्मट १९१, १९६-७ ४०९-१०,४१४, ४१६ लक्ष्मण १९२, १९४, १९७ लाडोल ३८५-६ लक्ष्मप्परस ३१३ लातूर ४२६ लक्ष्मरस ९८, १०३, १०५.६, लालाक २ ११०-३, २३६-७, २४४ लिंगण्ण ३३०-१ लक्ष्मादेवी १७८,२११ लोकटेयरस ४४ लक्ष्मी १९३, १९७ लोकाचार्य २९१ लक्ष्मीदेव १३२, २३६-७, २४४ । लोकाम्बा ६५ लक्ष्मीधर ३९१ लोकिकरे ३७७ लक्ष्मीमाणिकदेवी ३.३ लोक्किगुण्डि ७३ लक्ष्मोसेन २९४-५, २९९, ३४४.५, लोढा गोत्र ४०३ ४०१,४०५-६,४१४, ४२०, लोलाक १९२-५, १९७ ४२७.८ लोहाचार्यान्वय ४०४-६, ४१० लक्ष्मेश्वर ५४, ११२.३, ११५, वकग्रीव १७५, २१४, २१६, २८८ १५८, २६५, ३००, ३१५, वण ९५ वनदेव २५१ लखनऊ १७४, १८०,३८६,३८८, वचनन्दि १७५, २१४-६ बर्षासंग ७५ लन्छियम्बे ३१८ लन्छलदेवो १७९-८२, १८६ बटगोहालो ७, ९

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