Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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४८.
जैनशिलालेख-संग्रह
परान्तक ५२
पायण्ण ३४३ परिसय २६६
पायिम्म ७८,८१ पर्नेयूरनाडु १७९
पायिसेट्टि २५४ पर्वतमुनि २२४
पारिसदेव १७९ पलसिगे ८२
पारिससेट्टि २१९.२० पल्लव ११.२, ३८, ९३, ३५४
पाश्र्व १२०.१ पल्लवपेनिडि ११५, १२०
पार्श्वदेव ३८४ पल्लवरैयन् १६७
पावदेवी ३३६ पल्लवादित्य २३
पालियड ९६ पल्लवेलरस १८, २०
पालैयूर ३५४ पल्लिका १९०
पाल्यकोति २२७ पल्लिच्छन्दल ३१७
पाल्हण १९६ पल्लीवाल ३९५, ४०१
पासकीर्ति ४०४ पसिडिगंग २६
पिट्टनुप १५१.२ पहाड़पुर ६
पितल्यागोत्र ४२७ पंचस्तूपनिकाय ७-९
पिरियमोसंगि ७६-७ पाटणी गोत्र ४२५
पुगलोकरनाथनस्लूर २५५ पाटशीवरम् २०८
पट्टय ३५३ पाण्डय २७, ३८-९, ७४, १०५, पुणिस १४७
२५३, २५५, २६१, २६४, पुण्ड्रवर्घन ७, ९ २९९
पुतडिगल ६३. पाण्डपप्परस ३१९.२०
पुत्तिगे ३२७, ३४१ पाण्डयरस १८३, १८५
पदुप्पट्ट १४१ पानूगल १४८, २१४
पुनागवृभमूलगण ८०, ८१, १८६ पान्थिपुर १८६
पुषाद १७, १८, २८, ५४ पापडीवाल ३९६, ३९८, ४११ पुरगूर ८५

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