Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 511
________________ ४१५.२७ কাহিত ৬ कुदेपली २ काष्ठासंघ ३९६, १००, ४०२-६, कुन्तलनाडु ३०४.५ ४०९-११, ४१४-६, ४२७ कुन्दकुन्दान्वय, कुन्दकुन्दाचार्यान्वय कासिमय्य १९८ १२६, २७८, ३१७, ३९७, कांचन ९८ ४०१-४, ४०७, ४०९-१२, कांचेलादेवी २१७ किन्निगभूपाल ३३५ कुन्दकुन्द २२१-२, २२५ किरसंपगाडि १५३ कुन्दनोलु २८८ किसुबल्लि २३०-१ कुन्दरगे ८५ किसुबोलल २५ कुन्दाति १३९-४० कोरप्पाक्कम् ४२ कुपण ३८ कोयरबुर ३१७ कुप्पटूर २२४ कीर्ति १५१-२ कुब्ज विष्णुवर्धन ६३, ६८ कोतिवर्मन् २५ कुमठ २०८, २७८, ३७८ कीर्तिसागर ३६१ कुमरन् देवन् ४१ कोलक्कुडि २२, ७२, २२७, ३६५ कुमरम्प १४७ कुक्कुटासन १६७ कुमारकीति १८६ कुच्चंगि २०७, ३२८ कुमारनन्दि २८-३० कुडलूर २६, ५४ कुमारपर्वत ५७ कुडुगिनवयलु ३२० कुमारबोड १४६, २२३ कुण्टनहोसल्लि १७१ कुमारसेन १७५, २९४-५ कुण्डकुन्दान्वय ११४, १५५-६ कुमिलिगण ४२ २३३-४, ३६०, ३६४ कुमुदचन्द्र २५८-९, २७१-२, ४०७ कुण्डघाट ३०७, ३६५ कुमुदिगण ८२, ३७७ कुण्डमग्य ४० कुम्बनूर १४५ कुष्णत्तूर ३०७ कुरजन १३७

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