Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
जैनशिलालेख-संग्रह
काडेमध्य २०४-५
कामनपाल २९७ "कसपगावुण्ड २४९
कामराज ३५५-६ कंचरस ९१-३
कामय ३१४ कंचलदेवी ३७८
काम्बोदि ३४९ कंचिकब्बे ७६
कायस्थ १९५ कंति २३४
कायाम्पट्टि ३६६ कंदगल २५१
कारकल ३१९-२०, ३२९, ३७१ काकतीबेत १४२, १४५
कारंजा ३९५, ४०५.६, ४०९, काकन (काकन्दी) ३४८
४१२-३, ४१६-७, ४२५ काकुत्स्थ १३
कारिजे ३२० कागिनेल्लि ७७, ३७५
कारेयगण १५३ काटरस १०६, ११०
कार्तवीर्य १२८, १८५-६, २३५-९ काटिमय्य ११२
२४२-६, २४८.९ कारगण २६६
कालडिय ७८, ८१ । काणूर (क्राणूर ) गण ५८.६०. कालण १८६ १४८, १५५-८, १७३, २२४,
कालहल्लि ३१९ २३३-४, २५०-१, २६८,
कालिदास १३४, १७८ २९६, ३२१, ३२३, ३२६, कालिमय्य ९९
३६४, ३७०,३७५,३७८-८० कालियूर ९९ काण्वायन ९, १७
कालिसेट्टि ३७६ कादलूरु ५४
कावण २६७ कान्तराजपुर २१७
कावदेवरस २०८-९ काप ३२१-३,३२६
कावनहल्लि १३३-४ कामठी ३९५, ४१२
कावटय २५७ कामण्ण २८२, २८६
कावला गोत्र ४०५ कामदेव ७७
काशिक ७.१

Page Navigation
1 ... 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568