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-२२१] कोल्हापुरका लेख
१६५ पत्त । लंकरोक्कलल्लि पारु सिंगलगे मणेतिविगे मरवियेंदिवोन्दक्कुं । वर्षक्के मंचवोन्दक्कुं । अल्लवरिसिनं शुण्ठि बेल्लुल्लि बजे भद्रमुस्तेवियु मोदलागि तूगि मारुव मण्डंगलगे हेरिंगयवलं जवलक्किप्पलं हसरकोप्पलं जीरगे मेलसु सासवियें बिवु हेरिंगोम्मानं जवलक्करवनं हसरक्के सोल्लगे । उप्पु मोदलागि हदिनेंटु ध्यानगलगं भंडिगे कोलगोंदु हेरिंगे मानवेरडु तलेबोरेगोर्मानं बाडु कार्यबिवु मंडिग हत्तु तलेवोरेगे नाल्कक्कुं। भण्डिगे दण्डिगे
बोंदु । ३२ सेवेयरदुः हूटेयेरडक दण्डिगे वोदु सेवेयरड हविन हेडलिगेगे
माले वोन्दु कुंबररल्लि हसरक्क मडके बोन्दु ॥ इन्तीया३३ यमन लिदातांते बाणराशि कुरुक्षेत्रादिगलोल पंचमहापातकम
माडिद फलमकुं॥
[ इस लेखका साराश द्वितीय भागमे क्र० ३०२ मे दिया है किन्तु उस समय मूल लेख प्रकाशित नही हुआ था। यह लेख शिलाहार वंशके महामण्डलेश्वर गण्डरादित्यके समय शक १०५८ मे लिखा गया था। इसका सामन्त निम्बदेव था जिसने तोण्डमण्डलके युद्धमे शूरता प्रदर्शित की थी। निम्बदेवने कवडेगोल्ल नगरमे एक जिनमन्दिर बनवाया था। इसके बाद वीरबलंज लोगोंके संघका विस्तृत वर्णन है। उसके प्रतिनिधियोंने कोल्हापुरके रूपनारायण जिनमन्दिरके व्यवस्थापक मूलसंघ-देशीय गणके श्रुतकीति विद्यको कवडेगोल्ल जिनमन्दिरके लिए उक्त तिथिको कुछ करोंका उत्पन्न दान दिया।]
[ए० इं० १९ पृ० ३० ]