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जैन शिलालेख संग्रह
( क्र० १०८, १२०, १४३ ), श्रीश्रीमाल ( क्र० ४९-५० ) हुंबड ( क्र० ८, २०,३०,३९,८६ ), गोलापूर्व ( क्र० ६८, २९१), परवार (क्र० ६९, १८८, १९१-९२,२५०,२५४, २६३, २७२, २८५ ), खंडेलवाल ( क्र० १०७, २८२) सैतवाल ( क्र० ९५, २७९, २८६, २८७ ), बघेरवाल ( क्र० १४, २९, ३८, ४४,४६,५५-६,६६,८०-८२,८८-९०, ९२,९४,९६, १२२, १२५, १३०-१, १३५,१५७,१८२,१९८, २०१, २०२, २०४, २२७ ) ।
प्रतिष्ठापक आचार्य अधिकांश मूलसंघके सेनगण तथा बलात्कारगणके थे, काष्ठासंघ के नन्दीतटगच्छके कुछ आचार्योंके उल्लेख भी है । इन उल्लेखों का उपयोग हमारे ग्रन्थ 'भट्टारक सम्प्रदाय' में किया गया है । उससे इन भट्टारकोंके बारेमे अन्य जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।
संवत् १५४८ के दो लेख ( क्र० १८, १९ ) विशेष रूपसे उल्लेखनीय है । इनमें पहला लेख कोई ७७ मूर्तियों पर है। ये मूर्तियाँ मुडासा शहरमे शिवसिंहके राज्यकाल मे सेठ जीवराज पापडीवालने प्रतिष्ठित करवायी थीं । इस समारोहके प्रमुख भट्टारक जिनचन्द्र थे । इस समारोहमें प्रतिष्ठित मूर्तियां प्रायः प्रत्येक दिगम्बर जैन मन्दिरमे पायो जाती है ।