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जैन शिलालेख संग्रह
११ ( २ ) ८ है । इसका तीसरा अंक कुछ अस्पष्ट है । ]
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[रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १५३ ]
१५७ लक्ष्मेश्वर (मैसूर)
शक ९९६ - सन् १०७४, कमंड
[ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लके समय चैत्र शु० ८, रविवार आनन्द संवत्सर, शक ९९६के दिन लिखा गया था । मणल कुलके महासामन्त जयकेसियरसने पुरिगेरेके पेर्माडिबसदिके दर्शन किये तथा मूलसंघ - बलात्कारगणके गण्डविमुक्त भट्टारकके शिष्य त्रिभुवनचन्द्र पण्डितके निवेदनपर उसे पुरके रूपमे परिवर्तित किया ऐसा इसमें उल्लेख है ।]
[रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई० २९ पृ० १६३]
१५८ हनगुन्द (मैसूर)
शक ९९६ सन् २००४, कराड
[ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लदेव सोमेश्वर (२) के समय पौष शु० ५, रविवार, शक ९९६, आनन्द संवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिखा गया था । इसमें सूरस्तगण चित्रकूटान्वयके अरुणंदिभट्टारकके शिष्य आर्य पण्डितको पोन्नुगुन्दकी अरसर बसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान श्रीकरण देवणय्य नायक, पेगंडे नाकिमय्य, पेगंडे रेवणय्य, करण आय्चप्पय्य, तथा पसायित काटिमय्यने सर्व प्रधानों द्वारा की गयी जिन पूजाके अवसरपर दिया था । उस समय बेल्वल तथा पुलिगेरे प्रदेशोंपर महामण्डलेश्वर संग्रामगरुड लक्ष्मरस का शासन चल रहा था ।] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ]
[ सा० इ० इ० ११ १० १११ ]