________________
परिशिष्ट की अनुक्रमणिका
Jain Education International
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
९.
राक्षसवंश की स्थापना
चंद्रगति भामंडल आदि के पूर्ववभ
दशरथ, सत्यभूति व जनकराजा के पूर्वभव
जटायु का पूर्वजन्म
वानरवंश की स्थापना
जै
इंद्रजित, मेघवाहन, मंदोदरी के पूर्वभव
भरत व भुवनालंकार हाथी के पूर्वभव
राम-लक्ष्मण, विशल्या, विभीषण, रावण,
सुग्रीव व सीता के पूर्वभव
लव-कुश के पूर्वभव
112
113
For Personal & Private Use Only
114
115
116
117
118
120
122
न रामायण के प्रकाशन में प्रेरक
स्व. प. पू. मुनिराज श्री देवेशरत्नविजयजी म. सा. ने ६३ वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर गुरू समर्पण के १२ वर्ष तक विशुद्ध संयम की आराधना की। साधना के दौरान व पहले भी आप परिवारजन को दीक्षा की प्रेरणा देते। जिसके परिणाम स्वरूप मुनि अर्हंरत्नविजयजी म. (सांसारिक दोहित्र), मुनि परमरत्नविजयजी म. (सांसारिक दामाद) साध्वीजी हर्षितरेखाश्रीजी म. सा. लक्षितरेखाश्रीजी म. सा. कुलरेखाश्रीजी म. सा. समकितरेखाश्रीजी म. (सांसारिक पुत्रियाँ), सा. मधुररेखाश्रीजी म. (सांसारिक धर्मपत्नी) सा. तत्वेशरेखाश्रीजी म., सा. जिनरेखाश्रीजी म. सा. राजुलरेखाश्रीजी म. सा. तीर्थरेखाश्रीजी म. (सांसारिक दुहित्रियाँ) इन ११ जन ने दीक्षा ग्रहण की। रामायण के प्रकाशन में भी आपने काफी प्रेरणा दी।
www.jainelibrary.org