________________
जैन-क्रियाकोष। रटे सर ससि सुर सबै,जिनसम और न ईस ॥ अर्चे सहमिंद्रा महा, अरचे चतुर सुजान। हरिहर प्रतिहरि हलि मदन, पूजें चक्रिपुमान ।। गुरुकुल कर नारद सबै, सेवेतन मन लाय । अगमें श्रीजिनरायसा, पूज्य न कोई लखाय ॥ तीर्थकर पद सारिखा,और न पद जग माहिं । बनवृषभनाराचसो, संहनन कोइ नाहिं ।। समचतुरजसंठानसो, और नहीं सठाण । पुरुष मलाका सारिखा, और न कोई जाण ॥६॥ चक्रायुध हलायुधा, जे हैं चर्मसरीर । ते तीर्थकर तुल्य है, कुसमायुध सब धीर ।। और हु चर्मसरीर धर, तदभव मुक्ति मुनीस । ते जिननाथ समान हैं, नमें सुरासुर सीस ॥ नहीं सिद्ध पर्यायसी नहीं और पर्याय । नहीं केवलीकायसी, और दूसरी काय ॥ महंत सिध साधु सबै, केवलि भासित धर्म । इन चउसे नहि मंगला, उत्तम और न पर्म । इन चउसरणन मारिखे, सारण नहिं जगमाहि। संघ न चउविधि मघसे, जिनके संसय नाहिं ।। चोर न इन्द्री-चित्तसे, मुसे धर्मधन भूरि । चारितसे नहिं नलवरा, डारै चारनि चूरि ।। जैसें ए उपमा कहीं, तैसें शील समान । व्रत न कोई दूसरो, भाषे श्री भगवान ।।