Book Title: Jain Kriya Kosh
Author(s): Daulatram Pandit
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 222
________________ मन-क्रियाकापा अपधान है छट्टम बङ्गा, योग्य क्रिया करिवौ जुममा II जिन भाषितकों मङ्गी करनौ, सो उपाधान अङ्गको धरनी । सत्तम है बहुमान विख्याता, ताको मर्थ सुन्तजि घाता ||७८॥ बहु सतकार सु आदर करिक, जिन आज्ञा पाले उर घरिक। अष्टम मन अनिन्हव धारे, ते अष्टम भूमी झु निहारे ॥७॥ जो गुरुके डिग तत्त्वविज्ञाना, पायो अद्भुत रूप निधाना। तो गुरुको नहिं नाम छिपावै, बार बार महागुण गावै ॥८०। सो कहिये जु अनिन्हव मना, झानस्वरूप अनूप अभङ्गा। सम्यक ज्ञान तनूँ आराधन, शानिनकों करनू शिवसाधन ।।८।। दरशन मोह रहित जो ज्ञानी, तस्वमावना दृढ़ ठहरानी। जे हि जथारथ जानें भावा, ते चरित्र घरै निरदावा ॥२॥ बिना ज्ञान नहिं चारित सोह, बिना ज्ञान मनमथ मन मोहै। सातै ज्ञान पाछेजु चरित्रा, भाख्यौ जिनवर परम पवित्रा ॥८॥ सर्व पापमारग परिहारा, सकल कषायरहित मविकारा। निर्मल उदासीनता रूपा, आतमभाव सु चरित अनूपा ॥८॥ सो चारित्र दोय विधि भाई, मुनिश्रावक व्रत प्रगट कराई। मुनिको बारित सर्व नु त्यागा, पापरीतिके पंथ न लागा ॥८५॥ आके तेरह मेद बखाने, जिनबानी अनुसार प्रवानैं। पंच महाव्रत पंच जु समिति, तीन गुपति के धारक सुजती ॥८६॥ चरविधि जङ्गम पंचम थावर, निश्चयनय करि सब हि बराबर। तिन सर्वनिकी रक्षाकरिवौ, सो पहलो सु महाव्रत परिवौ ॥ ८७॥ सन्तत सत्य वचनको कहियो, अथवा मौनव्रतको गहिवो। मृपावाद बोले नहिं जोई, दूजी महावत है सोई प कौड़ी मादि रखन परमा पटि अघटित तसु मेद अनन्ता। दत्त भइत्त नं परसै आई, सीमो

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