Book Title: Jain Kriya Kosh
Author(s): Daulatram Pandit
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 217
________________ निशिमोजन सम नहिं पापा, आकरि पायौ दुखसापा। सुनि करि मुनिवरके बैना, प्राण धारको मत जैना। सम्यक्त मणुव्रत धारी, प्रावक हूको अविकारी ॥१८॥ दोहा-मात पिता अति हित कियौ, दिवो भूप अति मान । पुण्यउदै लक्षमी अतुल, पाप किये बहु हान ॥ १६॥ चौपाई-पूजा कर जप बरहेत, महीदच हवौ मतिसंत । जिन मन्दिर जिमबिम्ब स्वाय, करी प्रतिष्ठा पुण्य उपाय ॥ २०॥ सिद्धक्षेत्र बंदे अधिकार, जिनसिद्धान्त सुनें अधिकाय । केती काल गौह भांति, समैं पाव धारी उपाति ॥ २१ ॥ शुभ भावनित छाड़े प्रान, पायौ पोडशस्वर्ग विमान । प्राधि महामणिमादिक लई, बायु बीस सागर भई ॥२२॥ भयौ स्वर्गधी सो परवान, राजपुत्र हूवौ शुभ लान। देश अवंती उत्तम बसे, नगर उजैणी अति ही लसै ॥२३ । तहां नरपती पृथ्वीमल, जिनधर्मी सम्यक्ति अचल्ल। प्रेमकारिणी रानी महा, ताके उदर मन्म सोलहा ॥ २४ । नाम सुधारस साकौ भयो, मात पिता अति आनन्द लयौ। अनुक्रम वर्ष सातको जबे, विद्या पड़ने मोप्यौ सबै ॥ २५ ॥ शस्त्र शास्त्रमै बहु परवीण, भयौ अणुव्रती ममक्ति लीन । जोवनईत भयौ सुकुमार, ब्याह कियौ नहिं धर्म सम्हार ॥२१॥ एक दिवस बनक्रीड़ा गयौ, बडतरु मिनुरीते क्षय भयौ । ताको लखि उपजी बैराग, अनुप्रेक्षा चिसई बड भाग ॥ २७ ॥ चन्द्रकीर्ति मुनिक लिग जाय, जिनदीक्षा लीनी शिरनाथ । अन्यन्तर बाहिर चौबीसा, प्रत्य तले मुनिकू नमि शीश ॥२८॥ पच महाव्रत गुप्ति नुतील, पा समिति वारी परवीन । सुकल ध्यान करि कर्म विनाशि केवळ पायोति सुखराशि २६॥त मन्य पदके जि,

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