Book Title: Jain Kriya Kosh
Author(s): Daulatram Pandit
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 212
________________ ર अन-क्रियाकोष । सिकौ त्यागता सम आन न दान कोड । देहादिककौ राग त्यागे, ते दाता बड़े ||६४|| कह्यो दान परभाव, अब सुनि जलगालण विधी । छांड़ौ मुगध स्वभाव, जलगाoण विधि भादरौ ॥ ६५ ॥ जलगालग विधि अडिल छन्द–अब जल गालन रीति सुनौ बुध कान दे । जीव असंखिनीst fe प्राणको दान दे । जो जल बरतै छाणि सोहि किरिया धनी । जलगालणकी रीति धर्ममै मुख भनी ||६६ ॥ नूतन गाढ़ौ वस्त्र गुडी बिनु जौ भया । ताकौ गलनौ करें वित्त घरिके दया। ढेढ हाथ लम्बो जु हाथ चौरो गहै । ताहि दुपड़तो करे छांणि जल सुख लहै ||६७॥ वस्त्र पुरानो अवर रङ्गकौ नांतिनां । राखे तिन तैं ज्ञानवत्तको पातिना ।। छाणन एक हु बन्द महोपरि जो रैं । भाषै श्रीगुरुदेव जीव अगणित मरें ॥ ६८ ॥ बरतें मूरख लोग अगाल्यौ नीर जे । तिनकों केतौ पाप सुनो नर बरसों पाप करें धीवर महा । अवर पारधी लहा ||६६|| तेतो पाप हि वारि तनधार जे । ऐसो जानि कदापि अगाल्यौ तोय जी । बरतौ मति ता माहिं महा अष होय जी ॥७०॥ मकरीके मुखथकी तन्तु निसैं जिसौ । अवि सूक्षम जो वीर नीर कृमि है तिसौ ॥ सामैं जीव असंखि उड़े है भ्रमर ही । अम्बू द्वीप न माय जिनेश्वर यो कही ||१२|| शुद्ध नातणे वाणि पान जबकों करें । छाण्यां जनधी धोय नांतणो जो घरे ॥ जननथकी मतिवन्त त्रिवायू जल धीर जे || असी भील वागुरादिक है जु एक ही वार जे । अणछायू वर

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