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जंन-क्रियाकोष।
बेसरी छंद। क्षमा करौ हममो सब जीवा, सबसों हमरी क्षमा सदीवा। सर्व भूत है मित्र हमारे, बैरभाव सबहीसों टारे ॥६॥ सदा अकेलो मैं अविनाशी, ज्ञान-सुदर्शनरूप प्रकाशी। और मकल जो हैं परभावा, ते सब मोते भिन्न लखावा ॥४॥ शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अखंडा, गुण अनन्तरूपी परचंडा। कर्मबन्धते रुले अनादी, भटको भववन माहि जुबादी॥१५॥ अब देखौ अपनों निजरूपा, तब होवो निर्वाणसरूपा। या संसार असार मंझारे, एक न सुखकी ठौर करारे ॥६६॥ यहै भावना नित्त भावतो, लहैं आपनो भाव अनतो। अब सुनि पोसहकी विधि भाई, जो दसमोव्रत है सुखदाई । पूजा शिक्षात्रत अति उत्तम, याहि धरे तेई जु नरोत्तम । न्हावन लेपन भूषन नारी-मगति गंध धूप नहिं कारी ॥८॥ दीपादिक उद्योत न होई, जानहु पोसहकी विधि सोई। एक मासमे चउ उपवासा, द्वे अष्टमि द्वे चउदसि मासा II षोडष पहर धारनो पोसा, विधिपूर्वक निर्मल निर्दोसा । सामायककी सो जु अवस्था, षोडश पहर धारनी स्वस्था ।१०० पोसह करि निश्चल सामायक, होवे यह भासे जगनायक । पोसक सामायकको जोई, पोसह नाम कहानै सोई ॥१॥ जे सठ चउ उपवास न धारें, ते पशुतुल्य मनुषभव हारें। बहुत करे तो बहुत भला है, पोसा तुल्य न और कला है ॥२॥ चउ टारै चउगतिके माहीं, भरमें यामें संसय नाही। कै उपवासा पखवारे में, इह आज्ञा जिनमत भारेमें ॥३॥