Book Title: Jain Kriya Kosh
Author(s): Daulatram Pandit
Publisher: ZZZ Unknown
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वर्णन |
१६१
प्रथम चौकी पहल मिध्यात एपांचों शेष है दुखात ॥१५॥ निध्यात उपशमैं जहां, दूजी क्षय उपशम है वहां प्रथम चौक है मिथ्यात ए पट क्षय होवें जड़तात ॥ १५ ॥ तृतिय मिध्यात उपशमै भया, तीनो क्षय उपशम सो ख्या । वैदसम्बक च्यारि प्रकार, साके भेद सुनों निरधार ॥ १४ ॥ प्रथम चौकरी क्षय है जहां दोय मिथ्यात उपशमैं वहां । तृतिय मिध्यात बड़े अब होय, पहलौ वेदक जानौ सोय ॥१५॥ प्रथम चौकरी प्रथम मिथ्यात, ए पांचों क्षय होय विख्यात । द्वितिय मिथ्यात उपशमें जहां, उदे होय तीजको तहां ॥१६॥ भेद दूसरों वेदकतणों, जिनमारग अनुसारे भणों । प्रथम चौकरी दो मिध्यात, ए पट प्रकृति होंय अब बात ||१७ तीसरौ मिथ्या होय, सीओ वेदक कहिये सोय ।
प्रथम चौकरी मिध्या दोय, इन छहुँको उपशम जब होय ॥१८ होय तीजौ मिथ्यात, सो चौथौ वेदक विख्यात ।
ए नव भेद स सम्यक कहे, निकटभव्य जीवनिनें गद्दे ॥१६॥ दोहा - खै उपशम वरतै त्रिविध, वेदक प्यारि प्रकार । झाविक उपशम मेलि करि, नवधा समकित धार ॥ २० ॥ नवमे शायिक सारिखो, समकित होय न और । अविनाशी आनंदमय, सौ सबकौ सिरमौर || २१ || पहली उपशम ऊपजै, पहली और न कोय । समके परसाद, पाछे क्षायिक होय || २२ || क्षायिक बिनु नहिं कर्मक्षय, इह निश्वै परवानि | क्षायक दायक सर्व ए, सम्यकदर्शन मानि ॥ २३ ॥ उपशमादि सम्यक सबै आदि अन्य जत जानि । शायिकको नहि अन्त है, सादि अनन्य बखानि ॥ २४ ॥ सम्यदृष्टी

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