Book Title: Jain Kriya Kosh
Author(s): Daulatram Pandit
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 200
________________ जैन-क्रियाकोष | कियौ करार न लोपे जोहि, सो पहिली पड़िमा गुण होहि ॥३१ जाके र कालिम नहिं रंच, जाके घटमैं नाहिं प्रपंच | जिन पूजा जप तप व्रत दान, धर्म ध्यान धारै हि सुजान ॥ ३२ ॥ गुण इकतीस प्रथम जे कहै, ते पहली पड़िमामें लहै । अब सुनि दूजी पड़िमाधार, द्वादश व्रत पाले व्यविकार ||३३|| पंच अणुव्रत गुणनत तीन, शिक्षाव्रत धारें परवीन । निरतीचार महामतिवान, जिनको पहली कियौ बखान ॥३४॥ व्यय तीजी पड़िमा सुनि सत, सामयक धारी गुणवन्त । मुनिसम सामायककी वार, थिरता भाव व्यतुल्य अपार ||३५|| करि तनको मन परित्याग, भव भोगिनतें होइ विराग । धरि कायोतसर्ग वर वीर, व्यथवा पदमासन धरि धीर ॥ ३६ ॥ घट घट घटिका तीनू काल, ध्यावै केवलरूप विशाल । सब जीवन समता भाव, पश्च परमपद सेवै पांव ॥ ३७ ॥ सो सब वर्णन पहली कियौ, बारा वरस कथनमें लियौ । चौथी प्रतिमा पोसह जानि, पोसह मैं थिरता परवानि ||३८|| सो पोसकौ सर्व सरूप, आगे गायौ अब न प्ररूप । पोसा समये साधु समान होवै चौथी प्रतिमावान || ३६ || दूजी पड़िमा धारक जेहि, सामायक पोसह विधि तेहि । धार परि इनकी सम नाहिं, नहिं थिरता तिन रंचक माहिं ||४०| तोजी सामायक निरदोष, चौथी पडिमा पोसह पोष । पंचम पड़िमा घरि बड़भाग, करें सचित वस्तुनिको त्याग ॥४१॥ काचो जल अर कोरो धान, दल फल फूल तजै बुधिवान । काळ मूळ कंदादि न वखै, कूपल बीज अंकुर न भखें ||४२ ॥ २००

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