________________
बारह व वर्णन ।
..nmwww . mmm मुनिकी सेवा सुखकारी, बड़ भाग करें उरधारी। पुस्तक मुनि पै ले जावें, सुनि सूत्र अर्थ ते आवें ॥११॥ ते पावें आसमज्ञाना, ज्ञानहिं करि है निरवाना। मेषज भोजनमे युक्ता, मुनिकों लखि राग प्रत्यक्ता ॥१८॥ देवें ते रोग नसावें, कर्मादिक फेरि न आवें । मुनि उपसर्ग निवारें, ते आतम भवाघि तारें ॥१९॥ मुनिराज समान न दूजा, मुनिपद त्रिभुवन करि पूजा। मुनिराज त्रिवर्णा होवै, शदर नहिं मुनिपद जोबे ॥२०॥ मुनि आर्या एल महा ए ह', क्षत्री द्विज बणिजाए । अब मध्यपात्रके भेदा, त्रिविधा सुनि पाप उछेदा ॥२॥ उतकिष्ट रु मध्य जघन्या, जिनसे नहिं जगमे अन्या। पहली पडिमासो लेई, छठ्ठी तक श्रावक जेई ॥२था मध्यनिमे जघन कहावै, गुरु धर्म देव उर लावै । जे पञ्चम ठाणों भाई, अणुवृत्ती नाम धराई ॥२३॥ पहली पडिमा धर बुद्धा, सम्यक दरसन गुण शुद्धा । त्यागें जे सातों बिसना, छाडें विषयनकी तृष्णा ॥२४॥ जे अष्टमूल गुण धारे, तजि अभख जीव न सधारें। दूजी पडिमा घर धारा, व्रतधारक कहिये वीरा ॥२५॥ बारा व्रत पालै जोई, सेवे जिनमारग सोई।
जे धार पञ्च अणवत्त, त्रय गुणनत चउ शिक्षाबत ॥६॥ चौपाई-ताजी पडिमा धरि मतिवन्त, सामायकमे मुनिसे सन्त ।
पोसामे आरूढ़ विशाल, सो चौथी पडिमा प्रतिपालारण पश्चम पडिमा घर नर धीर, त्याग सचित्त वस्तु वर वीर ।