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जैन-क्रियाकोष |
दानकलासी दूसरी, दुख हरणी नहिं कोइ । ज्ञानकलासो जगतमे सुखकारी नहिं होइ ॥ नहिं क्षुधासी बेदना व्यापै सबकों सोइ । अन्न-पान दातारसे, दाता और न होइ || पर दुखहरणी सारिखी गुरुता और न जानि । पर पीडा करणी समा खलता कोइ न मानि ॥ शुद्ध पारणामिक ममा, और नाहिं परिणाम । सकल कामना त्यागमो और न उतम काम || धर्म सनेही सारिखा, नाहिं मनेही होइ । विषै सनेही सारिखा और कुमित्र न कोई ||२०|| सर्व वासना त्यागसी, और न थिरता बीर । कष्ट न नरक निगोदसे, नहीं मरणसो पीर ॥ राज-काज अभ्याससो और न दुरगतिदाय । जोगाभ्यास अभ्याससो और न रिद्धि उपाय || नहिं विराधना सारखी, वाघाकरण कहाहिं । आराधनसी दूसरी, भवबाधाहर नाहिं ॥ निजसरूप आराधना, अचल समाधि स्वरूप । ता सम शिवसाधन नहीं, यह भाषें जिनभूप ॥ for सत्तासी निचला और न मानो मित । आधि-व्याधि ते रहित जो, ध्यावौ निचित ॥ निज सत्ताको भूलि जे रार्चे माया माहि । धरि धरि काया ते भ्रमें, यामें संसै नाहि ॥ मुनित्रत तजि भवभोगकों, चाहे जे मतिमंद ।