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जैन-क्रियाकोष |
नर तेही परदारा त्यागे, नारी जे पर पुरुष न लागे । सर्वोत्तम वह नारि जु भाई, ब्रह्मचय्य आजन्म धराई | १४ | व्याह करे नहिं जो गुणवन्ती, विषय भाव त्यागे गुणवन्ती । ब्राह्मी सुन्दरि ऋषभ सुता जे, रहिन विकार सुधर्म रता जे ११५ चेटक पुत्री चदनबाला, ब्रह्मचारिणी बृत्त विशाला ।
बहुरि अनन्तमती अनि शुद्धा, वणिक सुता बूत्त शील प्रवृद्धा १६ इत्यादिक जो कीर्ति चितावे, निरमल निरदूषण व्रत पाले । महासती जाके न विकारी विषयन ऊपरि भाव न टारी । १७ १ आम तत्व लख्यौ निरवेदा, काम कल्पना सबै निषेदा । पुरुष लख सहु त अरु भाई, पिता समाना रभ्य न काई ॥ १८ ॥ धारे बाल ब्रह्मव्रत शुद्धा, गुरुप्रसाद भई प्रतिबुद्धा | ऐसी समस्थ नाहीं पावै, तो पतिव्रत प्रत्त धरावे ॥ १६ ॥ मात पिताकी आज्ञा लेती, एक पुरुष धारै विधि सेती ।
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करि माना ।
पाणिग्रहण कर सो कुलवन्ती, पतिकी सेव करें गुणवन्ती ||२०|| और पुरुष सह पिता समाना के भाई पुत्रा मेधेश्वर राजाकी राणी, तथा रामकी राणी जाणी ॥ २१॥ श्रीपाल भूपतिकी नारी. इत्यादिक कीरति जु चिनारी । जगसो विरकन भाव प्रवर्तै, औसर पाय सिताव निवर्ते ||२शा
मैथुनको जानें पशुकर्मा, यह उत्तम नाग्निको धर्मा । तजि परिवार जु सम्यकवन्ती, हूवें आर्या तप संजमवन्ती ॥२३॥ ज्ञान विवेक विराग प्रभावै, स्त्रीपद छाडि स्वर्गपुर जावे । सुरग माहिं उतकिष्टा सुर हैं, बहुत काल सुख लहि फुनिनरहे धारे महात्रत निज ध्यावे, कर्म काटि शिवपुरको जावै ।