Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07 Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Jain Swarup Library View full book textPage 6
________________ ३ शिक्षाओं के मेवन से आत्माएं भी विकास के मार्ग में प्रविष्ट होने लग जाती हैं जिससे फिर कदाचार कोसों दूर भागने लगता है । इस लिये प्रत्येक व्यक्ति को सबसे प्रथम धार्मिक शिक्षाओं की ओर ही ध्यान देना चाहिये । तथा ---- इन सात भागों में यथा योग्य और जिस प्रकार बालक धार्मिक शिक्षाओं से विभूषित होकर अपने आत्मा को विकास मार्ग की और लेजा सके उसी प्रकार से उद्योग किया गया है । तथा जिस प्रकार श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन समाज ने इस पुस्तक के छ भागो को अपनाया है ठीक उसी प्रकार इस पुस्तक के सातवें भाग को भी अपनाकर अपने होनहार बालकों को जैन धर्म की परम मार्मिक शिक्षाओं से विभूपित करें जिससे उन बालकों का स्वभाव सदाचार की ओर ही लगा रहे । 1 शास्त्रों में श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने धर्म प्राप्ति के मुख्यतया दो कारण ही प्रतिपादन किये हैं जैसे कि सुनना और फिर उसका अनुभव द्वारा विचार करना | इन दोनों कारणों से धर्म प्राप्ति हो सक्ती है । क्योंकि जन सुनते हैं किंतु अनुभव नहीं करते तदपि धर्म प्राप्ति से यचित ही रहना पड़ता है । यदि अनुभव केPage Navigation
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