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प्राचार्य चरितावती
दंदन कर मुनि से निज हाल सुनाये । चला वाल प्रवास गुरु के श्राया, भेद समझ गुरचरणे शीश नवाया । योग्य समझ गुरु ने दी सोख करारी ॥ लेकर० ||१३||
अर्थ – मुनि शय्यभव का पता लगाते हुए ज्योहो बालक चम्पा नगरी के पास पहुंचा, जगल मे हो उसको मुनि शय्यभव के दर्शन हो गये । उसने मुनि को बदन कर अपना हाल सुनाया और पूछने लगाकि ग्राप मुनि शय्यभव को जानते हो तो बतलाइये । शय्यभव ने उसको अपने साथ चलने को कहा औौर उपासरे मे ग्राकर गुरुचरणों में वंदन कर बालक का परिचय दिया । वालक भी पिता श्री का भेद पाकर प्रसन्न हुआ । गुरु ने उनको योग्य समझकर निम्न प्रकार से प्रतिबोध दिया ||१३||
॥ लावणी ॥
जग में श्राकर जिसने धर्म कमाया. जीवन अपना उसने सफल बनाया | बोला बालक चरणशरण मे ले लो, जन्म सफल करने की शिक्षा दे लो ।
भाव सहित मुनित्रत लिया उसने धारी ॥ लेकर० ॥ १४ ॥
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अर्थ - भाई | इस संसार मे अगणित जीव जन्म धारण करते और मर जाते हैं पर वास्तव मे जीवन उसी का सफल है, जिसने ससार मे जीवन पाकर कुछ धर्म कमाया, देवगुरु की सेवा की प्रौर स्व-पर को पापभार्ग से बचाने का प्रयत्न किया । यो तो ग्रनन्तवार मनुष्य जन्म की सामग्री पा चुके हो। पर विषय कपाय मे उलझ कर उसका लाभ नही उठा पाये ग्रत ग्रवभी उठो और कुछ श्रात्म-कल्याण का साधन करलो । उपदेश को मुनकर बालक गुरु शय्यभव के चरणो मे दीक्षित हो गया और प्रयत्नपूर्वक गुरुवचनों पर चलने लगा || १४ ||
॥ राधे० ॥
मनक मुनि ने जन्म सुधाररण,
साधन करना ठाना है ।