Book Title: Indian Antiquary Vol 25
Author(s): Richard Carnac Temple
Publisher: Swati Publications

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Page 24
________________ 20 THE INDIAN ANTIQUARY. Trikama, you must not forsake him, whom you call your own. You came to distribute khichdo to my guests, and for my sake you employed five hands.24 Once when I was very thirsty at midnight, you took up the pot and poured water down my throat. 435 So many times have you established my truth (to the people), and even accepted my (fictitious) hundis. In that way then, Lord, do you supply the mosálin, and fill up the empty basket with gold [JANUARY, 1896. coins. But if you do not come to my aid, my beauteous Sâm, remember that, I have to do with the Nágars ! Refrain, I have to deal with the Nâgars, plainly understand it!" Hearing Narsiñh's prayer, the Lord of Vaikunth arose and rushed (to his assistance). कउ १२ मुं. राग सारंग. ठाली छाबमां कागळ धरी, नरसिंह मेहेते स्मरया हरी. वैरागी शरवे पुठे गाय, नागरने मन कउतक थाय. 370 वांका वचन बोले वदा, मेहतो माधवमां भेदीआ; जुओ छाबमां मुक्युं सार, भो दीसे कमखानी हार! ते बोल अंतर नव घरे, मेहतो स्तुती माधवनी करे: जय दामोदर बाळमुकंद, नरकनिवारण नंदनानंद; विश्वंभर वंदरावनचंद, देवकीनंदन आनंदकंद 375 गोपीनाथ गोविंद गोपाळ, जय बंधु दीनदयाळ हूं शेवकनी लेजो संभाळ, मोसाळानी करजो चाल. मुखे कीरतन हाथे ताळ, नात नागरी बोले आळ; छें दोहलो लोकाचार, लज्जा राखजो आणीवार; मारो शेठ तं नंदकुमार, शंकरशे पापी संसार? -380 तमो प्रतिपाल पोताना दास, माटे मुजने छे विश्वास. अमरीसनो नीवारयो त्रास, तमे भोगव्या छे गरभवास; लीधो मछ तणो अवतार, संखासुरनो कीधो संहार; कमल रूप धरयुं मोरार, रस्न चउदे काढयां बाहार; मार्यो हीरणाक्ष महापापी, धरणी स्थीर करीने स्थापी 385 अजामेळ सरखो महापापी, पुत्रने नामे पदवी आपी. प्रल्हादनी दोहली जाणी वेळा, परमेश्वर प्रगट थया वहेला. | 410 ध्रुवनी जन्म मरण भय हर्यो, अवीचळ पोतासरखी कर्यो. पोपट पढावती पुंश्चली, वैमाने बेशी वैकुंड वळी. तमो उछिष्ट आरोग्या बदरी, तोतो परमगती पानी शवरी; तारयो कुटुंब सहीत ते माछी. नव पाम्यो जन्मपीडा पाछी. छो दोहली वेळाना साथी, तमे ग्राहथी मुकाव्यो हाथी; वटुक वेश थया वामन, जानुं राख्यं इंद्रासन; समे पंचाळी दुख जाण्यं पुरयां चीर ते नवसेनवाणुः 395 कवरवथी जिताडयो पारथ, कुरुक्षेत्रमां हांक्या रथ; रुक्मांगद तारयो संसार, हरीचंद्रनी कीधी वार. शंख्या पुजतो राजकुमार, चंद्रहास राख्यो त्रणवार. समे सुधन्वा बळतो राख्यो, जो पीताए कढामां नांख्यो. वेहेरतां नव रोयो रज मुक्ति पाम्यो मुरध्वज. 400 खांडव वन खग लीधां राखी, गजघंटा ते उपर नांखी; वीदुरनी भारोग्या भाजी, तेनी प्रीत थया तमो राजी. सुदामानां लेई तांबुल, नवनीध आपी तें अमुल्य. मद माधवाना मननो हरयो, लीलाए गोवरधन धरयो; दावानल पीधो जदुराय, वळतां उगारयां गोपीने गाय; 405 कुबजानी लीधी अर्चा, तमे लोकतणी सही वरचा. अनाथबंधु दीनदयाळ, हुं शेवकनी लेजो संभाळ; तमो छो दामोदर दक्ष, हुं सरखा शेवक छे लक्ष. मारे एक तमारी पक्ष, परमेश्वर थाजो प्रत्यक्ष. मारे माथे दुयनां वृक्ष, तेथी लाजे तमारी पक्ष. धनवंत के नागरी नाव्य, तेमां दुरबळ मारी जात्य; दुखे दबाय तेषीस करोड, कल्पवृक्षने लागे खोड. शोभा वैष्णवनी जो गई, कळा तमारी जांखी थई; मने सगां थई लाग्यां जम, तमने निद्रा आवे केम. सगां सउ बेसारथां आणी, पुत्रीना कर मांही पीगाणी; 390 लगार चरण नमाव्यं शीश, विभीषण कीधो 415 छे कंकुवणी कंकावटी, पुत्रीने थाय चटपटी. लंकाधीश; मध्यान्ह उपर थई बे घडी, वेहेला आवो वेळा वटी; कुंवरबाई तारे आसरे, हुं दुर्बळथी अर्थ न सरे; शुं सुतो वंदरावन मांय, त्यां राधाजी चांपे छे पाय; 24. The text is rather unintelligible here. The khichdi (a mixture of rice and pulse) was provided by Krishna when Narsinh had some ascetics as guests.

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