Book Title: Gyanarnava Author(s): Pannalal Baklival Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal View full book textPage 8
________________ समाप्त किया था, इसलिये मुंजका राज्यकाल विक्रमसंवत् १०५० मान लेनमें किसीप्रकारका सन्देह नहीं रह सकता । इसके सिवाय श्रीमेरुतुंगरिने भी अपने प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थमें जो कि विक्रमसंवत् १३६१ (ई० स० १३०५) में रचा गया है, इस समयको शंकारहित कर दिया है। प्रबन्धचिन्तामणिमें लिखा है: विक्रमाद्वासरादष्टमुनिव्योमेन्दुसंमिते । वर्षे मुखपदे भोजभूपः पट्टे निवेशितः ॥ ___ अर्थात् विक्रम संवत् १०७८ (ई० स० १०२२) में राजा मुंजके सिंहासनपर महाराज भोज बैठे । अर्थात् श्रीअमितगतिसूरिके लिखे हुए संवत् १०५० से १०७८ तक मुंजमहाराजका राज्य रहा, पश्चात् भोजको राजतिलक हुआ और श्रीविश्वभूषणमट्टारक कथानकके अनुसार यही समय श्रीशुभचन्द्राचार्यका था। भोज । मुंजका समय निर्णीत हो चुकनेपर भोजके समयके विपयमें कुछ शंका नहीं रहती। क्योंकि मुंजके सिंहासनके उत्तराधिकारी महाराज भोज ही हुए थे। अतएव प्रवन्धचिन्तामणिके आधारसे संवत् १०७२ के पश्चात् भोजका राज्यकाल समझना चाहिये । अनेक पाश्चात्य विद्वानोंका मी यही मत है कि ईसाकी ग्यारहवीं शतान्दिके पूर्वार्धमें राजा भोज जीवित थे । श्रीमोजराजका दिया हुआ एक दानपत्र एपिग्राफिकाइंडिकाके वोल्यूम 111, p. 48-50 में छपा है, जो विक्रम सं० १०७८ (ई. सन् १०२२ ) में लिखा गया था । उससे भी भोजराजका समय ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दिका पूर्वार्घ निश्चित होता है । हड्व्यसंग्रहकी संस्कृतटीकाकी प्रस्तावनामें श्रीब्रह्मदेवने एक लेख लिखा है । जिससे विदित होता है कि, श्रीमोजदेवके समयमें ही श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती हुए हैं । वह लेख यह है: मालवदेशे धारानामनगराधिपतिराजभोजदेवाभिधानकलिकालचक्रवर्तिसम्वधिनः श्रीपालमण्डलेश्वरस्य सम्बन्धिन्याऽऽश्रमनामनगरे श्रीमुनिसुव्रततीर्थकरचैत्यालये शुद्धात्मद्रव्यसंवित्तिसमुत्पन्नसुखामृतरसास्वादविपरीतनारकादिदुःखभयभीतस्य परमात्मभावनोत्पन्नसुखसुधारसपिपासितस्य भेदाभेदरत्नत्रयभावनाप्रियस्य भव्यवरपुण्डरीकस्य भाण्डागाराद्यनेकनियोगाधिकारिसोमाभिधानराजश्रेष्ठिनो निमित्तं श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवैः पूर्व पड्विंशतिगाथामिलघुद्रव्यसंग्रहं कृत्वा पश्चाद्विशेषतत्त्वपरिज्ञानार्थ विरचितस्य वृहद्व्यसंग्रहस्याधिकारशुद्धिपूर्वकत्वेन वृत्तिः प्रारभ्यते । इसका सारांश यह है कि मालवदेश-धारानगरीके कलिकालचक्रवर्तिराजा भोजदेवके सम्बन्धी, मंडलेश्वर राजा श्रीपालके राज्यान्तर्गत आश्रम नामक नगरके मुनिसुव्रत भगवानके चैत्यालयमें सोम राजश्रेष्ठीके निमित्त श्रीनेमिचन्द्रसैद्धान्तिकदेवने द्रव्यसंग्रह ग्रन्थ बनाया था। इससे श्रीनेमिचन्द्रकी और भोजकी समकालीनता प्रगट होती है । परन्तु श्रीनेमिचन्द्रके समयका विचार १ श्रीममितगत्याचार्यने धर्मपरीक्षानामक ग्रन्थ संवत् १०७० में पूर्ण किया है। परन्तु खेद है कि, उसकी प्रशस्तिमें मुंजके विषयमें उन्होंने कुछ नहीं लिखा । २ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालाके द्वारा यह प्रन्थ छप चुका है।Page Navigation
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