Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग आगमों के लिए स्पष्टतः ' श्रुत' शब्द का उल्लेख हुआ है ।' अनुयोगद्वार सूत्र और विशेषावश्यकभाष्य में आगम को सूत्र, ग्रंथ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना आदि शब्दों से सूचित किया गया है।
आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थ में श्रुत, आप्तवचन, आगम उपदेश, ऐतिह्य, आम्नाय, प्रवचन एवं जिनवचन आदि को आगम कहा है। इस प्रकार 'आगम' शब्द के विभिन्न पर्यायवाची शब्द प्रचलित रहे हैं।
आगम व्युत्पत्ति
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आङ् उपसर्ग पूर्वक भ्वादिगणीय गम्लृ गतौ धातु से अच् प्रत्यय करने पर आगम शब्द बनता है° तथा आङ् उपसर्ग पूर्वक गम् धातु से करण अर्थ में घञ् प्रत्यय करने पर भी आगम शब्द बनता है- 'आगम्यते प्राप्यतेऽनेन' अर्थात् जिसके द्वारा प्राप्त किया जाए, वह आगम है ।" आवश्यकचूर्णि के अनुसार'आगमोणाम अत्तवयणं । "2 नंदी मलयगिरि वृत्ति के अनुसार आ- अभिविधिना सकलश्रुत विषय व्याप्तिरूपेण मर्यादया वा यथावस्थित प्ररूपणायागम्यन्ते परिच्छिद्यन्तेऽर्था येन स आगमः । अर्थात् आप्तवचन आगम कहलाता है । समस्त श्रुतगत विषयों से जो व्याप्त है, मर्यादित है, यथार्थ प्ररूपणा के कारण जिससे अर्थ जाने जाते हैं, वह आगम है । आगम की परिभाषाएँ
जैन परम्परा के श्वेताम्बर और दिगम्बर साहित्य में आगम को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया गया है। सभी ग्रंथकारों, विद्वानों व आचार्यों की परिभाषाओं को व्यक्त करना यहाँ शक्य नहीं है फिर भी आगम की निम्नलिखित परिभाषाएँ द्रष्टव्य हैं
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'आप्त का कथन आगम है। 14 यह परिभाषा अनेक ग्रंथों में प्राप्त होती है। आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक निर्युक्ति में कहा है तप, नियम, ज्ञानरूपवृक्ष के ऊपर आरूढ़ होकर अनन्तज्ञानी, केवली भगवान भव्य आत्माओं
प्रतिबोध के लिए ज्ञानकुसुमों की वृष्टि करते हैं, गणधर अपने बुद्धिपट पर सकल कुसुमों को झेलकर प्रवचन माला गूंथते हैं, वही आगम है । आवश्यकनिर्युक्ति व धवला टीका में कहा गया है कि तीर्थंकर केवल अर्थरूप का उपदेश देते हैं और गणधर उसे ग्रंथबद्ध या सूत्रबद्ध करते हैं ।"
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