Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 17
________________ भी गलत / पूरी गीता भागने के खिलाफ है / संसार से भागकर नहीं-संसार में जागकर ही कोई संन्यासी होता है / सपने को सपने की भांति जानना ही जागना है / सत क्या, असत क्या-यह पहचान ही जागना है / क्या जागना भी भागने का शीर्षासन नहीं है? जागना अर्थात जो है-उसे देखना / बोध के अभाव में प्रयत्न / जागते ही जगत खो जाता है-परमात्मा ही शेष रहता है / प्रयास तो हमें असत्य के लिए करना पड़ता है / लड़-क्योंकि न कोई मरता, न कोई मारा जाता / जैनियों ने कृष्ण को नरक में डाल दिया / नीति धर्म नहीं-बहुत कामचलाऊ सामाजिक व्यवस्था है / नीति भी असत का हिस्सा है / धर्म-नीति और अनीति के पार है / गीता का युद्ध रूपक नहीं—ऐतिहासिक घटना है / नीति-अनीति, शुभ-अशुभ-सब स्वप्न / मारना भी स्वप्न, बचाना भी स्वप्न / जो है-उसे न मिटाया जा सकता, न बचाया जा सकता / अच्छे-बुरे सपने में चुनाव नहीं करना है-दोनों से जाग जाना है / मृत्यु एकमात्र असंभावना है। 8 मरणधर्मा शरीर और अमृत, अरूप आत्मा ... 119 आत्मा न हननकर्ता है और न हनन्य, तो हिटलर द्वारा की गई हत्याएं और हिरोशिमा का विनाश क्या न्याययुक्त माना जा सकता है? / हिंसा तो होती ही नहीं, लेकिन हिंसा की आकांक्षा होती है / मारने में रस लेना कि मैंने मारा-यह पाप है / पाप हिंसा होने में नहीं-हिंसा करने में है / प्रश्न भाव का है-घटना का नहीं / विनाश का रस हिंसा है / अशांत आदमी का रस विनाश में-शांत का सृजन में / ज्ञानी के लिए न कुछ अपना है, न कुछ पराया है / जब तक अपने-पराए का भाव है-तब तक चोरी है, हिंसा है / कृष्ण के तल पर ऊपर उठे / सब रूपों के आधार में अरूप / जो जन्मा है, वह मरेगा ही / जो जन्म के पहले था, वह मृत्यु के बाद भी होगा / मानना नहीं जानना / सत्य के संबंध में जानना–सत्य को जानना नहीं है / शरीर से हमारा तादात्म्य गहरा है। / शरीर से भिन्न अपने होने का हमें कोई पता नहीं है / अनेक जन्म–शरीररूपी जीर्ण वस्त्रों को बदलना / साक्षी के लिए शरीर वस्त्र की तरह / सर्वव्यापक और पूर्ण आत्मा का पुनर्जन्म कैसे? / आत्मा का गर्भ प्रवेश कैसे? मरण स्थूल शरीर का / पुनर्जन्म की सारी यात्रा सूक्ष्म शरीर द्वारा / सूक्ष्म शरीर द्वारा अपने योग्य गर्भ में प्रवेश सहज प्राकृतिक घटना है / सूक्ष्म शरीर का आना-जाना है-आत्मा न आती, न जाती / सूक्ष्म शरीर को जीवन ऊर्जा मिलती है-सर्वव्यापी आत्मा से / आत्मा परमात्मा से सदा मिली ही हुई है / सूक्ष्म शरीर के विसर्जित होते ही जन्म-मरण की यात्रा समाप्त / स्थूल शरीर मां-बाप से, सूक्ष्म शरीर पिछले जन्म के संस्कारों से और जीवन-ऊर्जा-आत्मा-परमात्मा से। आत्म-विद्या के गूढ़ आयामों का उदघाटन ... 135 आत्मा का अर्थ है-अस्तित्व, बीइंग / आत्मा का न प्रारंभ है-न अंत / भीतर का आकाश है-आत्मा / बाहर का आकाश है-परमात्मा / आकाश में बाहर-भीतर नहीं होता / मैं आत्मा नहीं है / वृद्धावस्था में आस्तिकता-मृत्यु-भय के कारण / सूक्ष्म शरीर की यात्राएं क्या बिना आत्मा के सहयोग के संभव? आत्मा सक्रिय भागीदार नहीं है सिर्फ उसकी निष्क्रिय मौजूदगी काफी / बंधन-आत्मा की स्वतंत्रता का ही हिस्सा / पहले खोना-फिर पाना / मुक्ति के अनुभव के लिए बंधन का अनुभव जरूरी / आत्मा संसार में जाती है, ताकि मुक्ति का फिर से अनुभव कर सके। संसार एक प्रयोग है-स्वयं को खोने का / यह आत्मा ही चुनाव है कि वह खोए और पाए / जिसे हम खोज रहे हैं, उसे हमने ही खोया है / जीवन आत्मा की लीला है | आखिरी क्यों का कोई उत्तर नहीं है / धर्म क्या की खोज है-और योग कैसे की खोज / धर्म एक विज्ञान है | क्यों का आग्रह

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