Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 15
________________ संतानों का जन्म? तर्पण और पिंडदान के अभाव में पितृगण का भूखों मरना और नरक में जाना क्या सही है? / अर्जुन के सब कारण अत्यंत ऊपरी और व्यर्थ हैं / पितगण आपके पिंडदान पर अवलंबित नहीं होते / पुरोहितों द्वारा शोषण / भय शोषण का आधार / प्रतिभाशाली जातियां, विकासमान संस्कृतियां, सभ्यताएं-सभी वर्णसंकर हैं / इंटर प्लेनेटरी क्रास ब्रीडिंग सबसे उत्तम / जितनी दूर की दो धाराएं-उतने ही विलक्षण व्यक्ति का जन्म / वर्णसंकर उस समय एक गाली थी, आज भी काशी में है / स्वर्ग और नरक क्या विशेष स्थान हैं? या प्रोत्साहन या भय की कल्पनाएं हैं? स्वर्ग और नरक-मानसिक दशाएं / सपने चित्रात्मक-क्योंकि बहुत आदिम / स्वर्ग अर्थात सुख, श्रेष्ठ, ऊपर, शीतलता, प्रकाश / नरक अर्थात दुख, नीचे, निकृष्ट, ताप, अंधकार / स्वर्ग या नरक हम मर कर नहीं जाते-हम दिन भर उनसे गुजरते रहते हैं / अर्जुन भागने की जिम्मेदारी खुद पर नहीं लेना चाहता है / अर्जुन बातें कर रहा है ब्राह्मणों जैसी, पर वह है-शुद्धतम क्षत्रिय, शौर्य का प्रतीक / बुद्ध हैं शुद्धतम ब्राह्मण-शांति के प्रतीक / समुराई अर्थात अर्जुन+बुद्ध / अर्जुन की दलीलें / दोहरे मन से उसे एक मन पर लाने का कृष्ण का प्रयत्न। अर्जुन का पलायनअहंकार की ही दूसरी अति ...71 दया और करुणा में अंतर / दया परिस्थिति-जन्य और करुणा मनःस्थिति-जन्य / दया अहंकार को भरती-करुणा विगलित करती / मुझे दया आती है-इसमें अर्जुन के अहंकार का स्वर / अर्जुन मारने के बदले मरने को तैयार / अहंकार शहीदगी से पुष्ट / कृष्ण बड़े मनोवैज्ञानिक-अर्जुन की नाड़ी पकड़ी है उन्होंने / अच्छाई और बुराई दोनों से अहंकार अपने को भरता है / दुर्जन सैडिस्ट (पर-पीड़क) होता है, सज्जन-मैसोचिस्ट (आत्म-पीड़क) / सैडिस्ट अपराधी कहलाते हैं और मैसोचिस्ट तपस्वी / अभी अर्जुन सैडिज्म से मैसोचिज्म की ओर जा रहा है / कृष्ण अर्जुन के अहंकार को फुसलाकर उसका मनोविश्लेषण शुरू करते हैं / विनम्रता-सुरक्षा करता हुआ अहंकार है / शरीर खो जाए पर इमेज बचे / पश्चात्ताप से अहंकार पुनःजीवित / मैं को बचा-बचा कर जीना / जानकारी ज्यादा, ज्ञान कम अर्थात पागलपन की संभावना ज्यादा / हर आदमी की अपनी निजी दुनिया / दूसरों की कोई नहीं सुनता, सब अपनी हांके चले जाते हैं / प्रोफेसरों को पागल आपने कहा, परंतु आप भी तो प्रोफेसर थे! / मनोवैज्ञानिक अहंकार-तृप्ति की बात करते हैं, पर आप अहं-शून्यता की बात करते हैं, ऐसा क्यों? प्रोफेसरों के पागल होने की संभावना ज्यादा है—आवश्यक नहीं / 'पर' से आया ज्ञान बोझ है, 'स्व' से स्फुरित ज्ञान मुक्ति है / पश्चिमी मनोविज्ञान के लिए मन ही अंतिम सत्य है, इसलिए मन के विकास की बात / संश्लिष्ट अहंकार को समर्पित भी होना है / अर्जुन पूछ रहा है कि मुझे रास्ता बताइए और अपना निर्णय भी दिए चला जा रहा है / अहंकार अति पर ही जीता है-भिखारी या सम्राट / दो अतियों के बीच खड़ा हो जाने वाला अहंकार से मुक्त / अदालत में शपथ लेते समय गीता पर ही हाथ क्यों रखवाते हैं-रामायण या उपनिषद पर क्यों नहीं? कृष्ण पूर्णावतार हैं / परमात्मा यदि पृथ्वी पर उतरे तो करीब-करीब कृष्ण जैसा होगा / कृष्ण-बहु-आयामी हैं / कृष्ण को सभी प्रकार के लोग प्रेम करते हैं, लेकिन अपनी-अपनी पसंद के हिस्से को / पूरे कृष्ण को प्रेम करने वाला कोई आदमी नहीं / सूरदास का केवल बाल कृष्ण से प्रेम / केशवदास का युवा कृष्ण से प्रेम / कृष्ण के मंदिर में बहुत दरवाजे हैं / कृष्ण से बड़ी छाती का आदमी खोजना मुश्किल है / गीता की कसम खिलाना अंधविश्वास नहीं है / प्रेम से बड़ा सत्य दूसरा नहीं है / प्रेम की रग पकड़कर ही हम आदमी से सत्य बुलवा सकते हैं। अनिश्चय से भरे अर्जुन का निश्चयात्मक ढंग से कहना कि मैं युद्ध नहीं करूंगा / कृष्ण को अर्जुन की आत्मवंचना पर हंसी आती है / निश्चय की भाषा बोलकर हम अपने अनिश्चय को छिपाते हैं / अर्जुन शास्त्रीय भाषा बोल रहा है, लेकिन है वह-मूढ़ / स्वयं को आगे रखना, धर्म को पीछे रखना-मूढजनों का काम / मूर्तमंत जीवंत शास्त्र-कृष्ण-सामने खड़ा है और अर्जुन शास्त्र की दलीलें दे रहा है / भगवान के सामने भी कुछ नासमझ शास्त्र लेकर पहुंच जाते हैं / अर्जुन कृष्ण को भगवान कहता है—पर जानता नहीं / अर्जुन का भगवान संबोधन औपचारिक है।

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