Book Title: Gita Darshan Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 14
________________ नास्तिकता में कोई प्रवाह नहीं है / उधार आस्तिकता और बंद नास्तिकता खतरनाक है / धार्मिक नास्तिक और अधार्मिक आस्तिक अर्जुन भी - प्रामाणिक आस्तिकता की खोज में / रसेल को कोई कृष्ण नहीं मिला – आगे मिल जाएगा। / रसेल को बुद्धि पर भी संदेह है / अर्जुन सार्त्र और रसेल का समन्वय है / अर्जुन का विषाद धार्मिक है- क्योंकि श्रद्धा पर ले जाने वाला है / अर्जुन की वंचना - विषाद के पीछे छिपा अहंकार / अर्जुन का उलझाव / श्रेय की चिंता करने वाला अर्जुन आस्तिक कैसे है ? भौतिक सुख का योगदान – विषाद तक ले जाना / अध्यात्म के लिए अनिवार्य भूमिका - भौतिक सुखों की पूर्ण विफलता / गीता को आप मनस-शास्त्र क्यों कहते हैं? अध्यात्म-शास्त्र क्यों नहीं कहते ? शास्त्र मन के ही हिस्से हैं / शास्त्र के पार - मन के पार छलांग - अध्यात्म है / गीता-साधक के लिए उपयोगी है - सिद्ध के लिए नहीं / जहां तक समस्या - वहां तक मन / अध्यात्म समस्या नहीं - समाधान है / सब समस्याएं मन की हैं / मन ही समस्या है / अध्यात्म वह अनुभव है - जहां मन नहीं है / मन के पार कोई शास्त्र नहीं है / गीता की समाप्ति पर अध्यात्म का प्रारंभ / आज शास्त्रों की नहीं— जरूरत है— प्रायोगिक मनोविज्ञान की / अध्यात्म के शास्त्र नहीं - वक्तव्य संभव / जीवन में पुनरावर्तन की क्या उपयोगिता है? उसका अतिक्रमण कब ? क्या उसमें गुरु या ग्रंथ सहायक हैं? पुनरावर्तन से प्रौढ़ता भी और जड़ता आने का खतरा भी / होशपूर्वक गुजरने पर मुक्ति और मूर्च्छा में गुजरने से जड़ता और बंधन / जीवन एक खुला अवसर है / निर्णय, संकल्प और साधना से जीवन में क्रांति संभव / सारा जीवन एक परिवार है / सभी युद्ध पारिवारिक हैं / अर्जुन क्या करे? आंख बंद करके युद्ध में कूद जाए या भाग खड़ा हो। 4 दलीलों के पीछे छिपा ममत्व और हिंसा ...53 आप गीता को मनस-शास्त्र क्यों कहते हैं ? गीता एक मनस- शास्त्र है, लेकिन उसका इशारा मन के पार है-आत्मा की ओर / गीता का मनोविज्ञान फ्रायड के मनोविज्ञान से भिन्न है / फ्रायड का मनोविज्ञान मन पर ही समाप्त हो जाता है / अभिव्यक्ति की, शब्द की आखिरी सीमा मनस है / पश्चिम के सारे मनोविज्ञान मन तक बंद - मन के पार का उनमें इनकार / मनुस्मृति के अनुसार आततायी को मारना अनुचित नहीं है, तो अर्जुन दुर्योधन आदि को मारने में हिचकिचाता क्यों है? / मनु के वचन सोशल एथिक्स मात्र हैं / कौन है आततायी ? विचारशील के लिए निर्णय कठिन / अर्जुन की मनोदशा मनु के नियमों से ऊपर की है / नियम कामचलाऊ और जड़ होते हैं - विशेष संकट की स्थितियों में अर्थहीन । इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा जाता है / मनु यहां काम न पड़ेंगे / अर्जुन के मनन से, मंथन से गीता का जन्म / महाभारत याद है - गीता के कारण / घटनाओं का नहीं — विचारणाओं का मूल्य / संकट में सवाल उठाना कठिन है / अर्जुन को मनु नहीं - कृष्ण जैसा आदमी चाहिए / गलत और सही की स्पष्टता – अज्ञानियों को अधिक, विचारशील को कम / चिंतन की प्रसव पीड़ा से गुजर कर मूल्यवान का जन्म / कौरवों की बुद्धि नष्ट - तो क्या हम भी युद्ध करके एक गलत काम करें ? अबौद्धिक तत्वों को बुद्धि से न्याययुक्त सिद्ध करने की चेष्टा / अर्जुन के पास दोहरा मन है / विचारशील आदमी सदा दोहरे मन वाला / विचारहीन या निर्विचार व्यक्ति में दोहरा मन नहीं / महाभारत का युद्ध मानवीय था, आज का युद्ध अमानवीय हो गया है / युद्ध के लिए तर्क-संगत व्याख्या की खोज में अर्जुन / युद्ध के मैदान में गीता जितना लंबा कृष्णार्जुन संवाद कैसे संभव ? मेरे लिए गीता काल्पनिक नहीं, शब्दशः घटी है / गीता टेलिपैथिक चर्चा है / गुरजिएफ का तीस व्यक्तियों पर भीड़ में भी अकेले रहने का प्रयोग / फयादेव के टेलिपैथी पर प्रयोग / घर पर अपने बच्चों के साथ टेलिपैथी करने का एक उदाहरण / हो सकता है कि महाभारत पहले लिखी गई हो, और गीता बाद में जोड़ी गई हो / महावीर की शून्य-वाणी / कृष्णार्जुन संवाद यदि संजय ने न सुना होता, तो खो जाता / बुद्ध का मौन हस्तांतरण महाकाश्यप को — अट्ठाइसवें आदमी बोधिधर्म द्वारा शाब्दिक अभिव्यक्ति / मौन संवाद में समय का माप भिन्न / स्वप्न में टाइम स्केल का सिकुड़ जाना / आनंद में समय शून्य हो जाता है / नारद की कहानी : जगत माया कैसे ? स्वप्न में प्रेम, शादी, बच्चे, पूर / संसार समय के माध्यम से देखा गया सत्य है, सत्य समय-शून्य माध्यम से देखा गया संसार है / युद्ध से स्त्री, संतान, कुल, जाति, धर्म, संस्कृति आदि के नष्ट होने का अर्जुन द्वारा उल्लेख / पलायन और दलीलें खोजने की वृत्ति / अमेरिका में एक किताब 'तेरह तारीख' / अर्जुन पलायन के लिए एक बड़ा जाल, एक बड़ी फिलासफी खड़ी कर रहा है / कृष्ण अर्जुन की चालबाज दलीलों पर हंस रहे हैं / अर्जुन निष्णात योद्धा है / अर्जुन तर्कपूर्वक भागना चाहेगा, कायरतापूर्वक नहीं / अर्जुन यदि प्रामाणिक हो जाए, तो कृष्ण न चाहेंगे कि लोगों की हत्या हो, धर्म विनष्ट हो / झूठे परिपूरक कारण / बुद्धि की चालाकी / युद्ध में वर्णसंकर

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