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अर्जुन के विषाद का मनोविश्लेषण
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हिंसा और ममत्व साथ-साथ जीते हैं / अर्जुन का सारा शिक्षण - युद्ध और हिंसा के लिए / अर्जुन की युद्ध से विरक्ति - अहिंसा के कारण नहीं - ममत्व के कारण / अहिंसा का उदय अपने-पराए का भेद मिटने पर ही संभव / मेरों के जोड़ में मैं का गठन / ममत्व - गहरी और अदृश्य हिंसा है / अर्जुन की अहिंसा झूठी है, ममत्व उसका पूरा है / दुर्योधन, युधिष्ठिर, द्रोणाचार्य को विषाद क्यों नहीं हुआ ? वे भी ममत्व से भरे लोग थे / हिंसा और ममत्व दो तरह की - अंधी या आंख वाली / अर्जुन एक तनाव है - दुर्योधनत्व और कृष्णत्व के बीच / पशु की सहजता और मनुष्य का तनाव / विक्षिप्तता या विमुक्ति / अर्जुन मनुष्य का प्रतीक है, दुर्योधन पशु का और कृष्ण परमात्मा का / मनुष्य के साथ संताप का प्रारंभ / तनाव को भुलाने की कोशिश - सेक्स, शराब, ड्रग्ज में / प्रश्न, जिज्ञासा, असंतोष, संताप – तो धर्म आ सकता है / मनुष्य का द्वंद्व कैसे उसका विकास बने ? धैर्य से द्वंद्व को झेलना ही तपश्चर्या है / संदेह के पार हुई जीवंत श्रद्धा / द्वंद्व को जीएं - द्वंद्व की आग से भागें मत / इतनी लंबी गीता अर्जुन के द्वंद्व के प्रति बड़ा सम्मान है / श्रद्धा - संदेह की यात्रा से मिली मंजिल है / द्वंद्व को स्वीकार करने वाली तीसरी शक्ति / सार्त्र का संताप और अर्जुन का विषाद क्या एक है ? / पश्चिम की अनिर्णायक संकट स्थिति में कृष्ण के जन्म की संभावना / सार्त्र अर्जुन की स्थिति में है, लेकिन भ्रम में है कि कृष्ण की स्थिति में है / सार्त्र जिज्ञासा व प्रश्न करे – ठीक है; वह उत्तर दे रहा है - यह खतरा है / अर्जुन का अज्ञान विनम्र है / सार्त्र का अज्ञान - अविनम्र, · आग्रही और मुखर है / शिष्य द्वारा गुरु होने की चेष्टा / अनिश्चयवाद का दुष्परिणाम - अराजकता / सार्त्रवाद से निर्मित खोखलापन / लेकिन पश्चिम के पास कृष्ण नहीं हैं — पैदा हो सकते हैं / कृष्ण कांशसनेस आंदोलन - पश्चिम की किसी गहरी पीड़ा की खोज / अर्जुन पैदा हो गया है— पर कृष्ण कहां हैं / शरीर मन की ही छाया है / जैसा मन, वैसा शरीर / अर्जुन का विषाद व कंपना — जेम्स लेंगे सिद्धांत के विपरीत / शरीर के भीतर संकल्प से गरमी पैदा करना / परिधि को बदलने के लिए केंद्र पर चोट / एकाग्र मन में संकल्प का जन्म / गीता सभी धर्म-ग्रंथों में अनूठी — क्योंकि वह एक महान मनोविज्ञान है / कृष्ण सिर्फ मनोविश्लेषक नहीं – मनोसंश्लेषक भी हैं / अर्जुन का खंड-खंड मन - कृष्ण का उसे अखंडित बनाने का प्रयास / जिंदगी महाभारत है - लंबे फैलाव पर / अर्जुन तीव्र संकट में है / पलायन या आत्म-क्रांति / युद्ध से पलायन - अर्जुन के लिए अस्वाभाविक / पूरी गीता - अर्जुन को संकल्पवान, आत्मवान बनाने के लिए है / मेरी सारी चर्चा उपयोगी – यदि आप भी अर्जुन की हालत में हों—बेचैन, संतापग्रस्त ।
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विषाद और संताप से आत्म-क्रांति की ओर 35
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अपनों को मार कर सुख कैसे मिलेगा? बिना अपनों को मारे सुख मिल जाए, तो अर्जुन तैयार है / सुख का भ्रम भंग अभी नहीं हुआ है / स्व-विरोध चित्त दशा / विषाद योग का अर्थ क्या है ? / विषाद से वापसी - स्वरूप पर / विषाद की जड़ में - आनंद की संभावना का छिपा बोध / विषाद – प्रतिभा का सहज परिणाम है / युधिष्ठिर तो धर्मराज हैं— उन्हें विषाद क्यों नहीं हो रहा है? वे तथाकथित धर्मराज हैं / धार्मिक होने का झूठा आश्वासन / समझौता और पाखंड / अर्जुन की चिंता और बेचैनी के पीछे उसकी प्रामाणिकता है / विषाद और विरह - आनंद की प्रक्रिया का प्राथमिक चरण / नास्तिक बट्रेंड रसेल को अर्थहीनता और खालीपन का अनुभव क्यों नहीं हुआ ? रुका हुआ विषाद है अधार्मिक – और गतिमान विषाद है धार्मिक / रसेल की नास्तिकता हां पर - प्रेम पर खड़ी है / प्रेम का स्वीकार गहरे में परमात्मा का स्वीकार है / आस्तिकता की तरफ बहती हुई नास्तिकता / ईमानदार आदमी जल्दी आस्तिक नहीं हो सकता / बड़ी तपश्चर्या से गुजरकर आस्तिकता का जन्म / नहीं का मरुस्थल / सार्त्र की