Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 11
________________ ( ६ ) एव पुट्ठो भयवं तियसिंदनरिंदनमियपयकमलो | अह साहिउं पयत्तो वीरो महुराइ वाणीए ॥ १३ ॥ भावार्थ:-- इस प्रकार श्रीगौतमस्वामीके पूछने पर, त्रिदश जो देवता उनके इन्द्र और नरिंद याने राजा ये सब जिनके पादकमल में नमते हैं, ऐसे श्रीवीर भगवान् मधुरवाणीके द्वारा प्रश्नोंके उत्तर देनेके लिये प्रवृत्त हुए ( १३ ) परमेश्वरकी बानी श्रवण करते हुए जीवको कष्ट, क्षुधा या तृषा वगैरह मालूम नहीं होते। इस पर किसी वृद्धा स्त्री की कथा कही जाती है ; श्रवण कर " किसी गांव में एक वणिक् रहता था, उसके घर में एक डोकरी थी, जोकि घरकां दासत्व करती थी । किसी 'समय वह डोकरी ईंधन लानेके लिये वनमें गई । मध्याह्नके समय वह भूख और तृषासे पीडित हुइ, जिससे थोडा ईंधन ले कर वापिस लौट आई । उसे देख कर सेठने कहाः - ' रे ! डोकरी ! आज थोडा ईंधन क्यों लाई ? जा, विशेष ईंधन ले आ यह वह बिचारी भूखी प्यासी फिर वनमें गइ । दुपहर का समय था, जिससे लू और तापको सहन करती हुइ काष्ट की भारी उठाकर चली । मार्गमे एक काष्ट नीचे गिर गया, उसको उठाने लगी; उतने में श्रीवीरप्रभुकी बानी सुननेमें आई । सुनतेही वह वहीं खड़ी रही, और क्षुधा, तृषा व तापकी वेदनाको भूल गई । एवं धर्मदेशना सुन कर अतिहर्षित होती हुइ शामको घर आई । घर आनेमें विलम्ब होनेका कारण जब सेठने उसको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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