Book Title: Dwait Samrajya
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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० स्यमेमतम् // १७॥प्रमाणाभावतोद्वैतंशून्यमेवसमाविशेद ॥नाढतशून्यतासातुभ-|| वेन्मानादिसंभवे // 18 // यदन्यस्यप्रमाणानिनसहेतकथंनुतत् // स्वस्मिन्सहेत // 2 // |मानानिविवस्वानिवतत्तमः॥१९॥तस्मात्तूष्णींतिष्ठवत्सतदेवाद्वैतमिष्यते // नाज्ञाननाशोमानस्यानंगीकारेभवेत्तव // 20 // यत्रस्यान्मानसम्पर्कस्तत्राज्ञानविनश्यति॥ इतिचेन्मानसम्पर्क कुत्रदृष्टस्त्वयावद // 21 // असिद्धानांहिमानानामसिद्धविषयेघुचेत् // सम्पर्क नातिवन्ध्यायाःसुतोमृगजलोमिषु॥२२ // सात्वात्वमपितत्रैवब्रह्म मानीकरोषिहि // मृगवारिजलैश्चेत्स्युःशीताभानुमरीचयः॥२३॥ तदात्वन्मतमानेनब्रह्मापिविषयीकृतम् ॥मानमेयायभावेतुसुषुप्तिस्तेमतेस्थिता // 24 // सत्यंतदा सुषुप्तिःस्याचदिमानादिगोचरे // निश्चयेसतिविश्रान्ति तथेयंस्थितिमता॥२५॥ अवस्थात्रयसद्भावोमानाभावानसिध्यति॥ इतिबोधःसुषुप्तिश्चेज्जन्मतेसफलीकृतम्। | // 2 // // 26 // विचारागस्यसम्पीतदैतनानिमहोदधौ॥चिन्तामणिर्मोक्षनामाकरएवस्थित For Private and Personal Use Only

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